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मरणकण्डिका आहारमुपधि शय्यामुद्गमोत्पादनादिभिः ।
विमुक्त गृह्णत: साधोरेषणा समितिर्मता ॥१२५२॥ रूप भाषा प्रत्याख्यानो भाषा है। मुझे पुस्तक देवो इत्यादि याचना वाली याचनी भाषा है । कुछ कहूंगा यादि कप प्रतापनी भाषा है ! गुरुजनोंको इच्छाके अनुकूल भाषा इच्छानुलोमा भाषा है । संशयरूप भाषा सांशयिकी भाषा है और अक्षर रचना रहित ध्वनि निरक्षरा भाषा है ।।१२५१।।।
एषणा समितिआहार, पिच्छो, कमंडलु, शास्त्र रूप उपकरण और वसतिका इन सबको उद्गम उत्पादना आदि दोषोंसे रहित ग्रहण करने वाले साधुके एषणा समिति होती है ॥१२५२॥
विशेषार्थ–साधुजन दिन में एक बार करपात्रमें आहार लेते हैं आहार ग्रहण करते समय उन्हें छियालीस दोष और बत्तीस अंतराय टालने होते हैं। यहांपर इन दोषोंका संक्षिप्त वर्णन करते हैं
उद्गम, उत्पादन, एषणा, संयोजना, अप्रमाण, इंगाल, धूम और कारण, मुख्य रूप से आहार संबंधी ये आठ दोष माने गये है।
(१) दातार के निमित्तसे जो आहारमें दोष लगते हैं, वे उद्गम दोष
कहलाते हैं। (२) साधुके निमित्त से आहार में होने वाले दोष उत्पादन नामवाले हैं। (३) आहार संबंधी दोष एषणा दोष हैं। (४) संयोगसे होने वाला दोष संयोजना है। (५) प्रमाण से अधिक आहार लेना अप्रमाण दोष है। (६) लंपटतासे आहार लेना इंगाल दोष है। (७) निंदा करके आहार लेना धूम दोष है । (८) विरुद्ध कारणों से आहार लेना कारण दोष है।
इनमें से उद्गमके १६, उत्पादनके १६, एषणाके १० तथा संयोजना, प्रमाण, इंगाल और धूम ये ४ ऐसे १६ + १६+१०+४-४६ दोष हो जाते हैं।