SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरणकण्डिका व्यालोकादिविनिमुक्तं सत्यासत्यमृषाद्वयम् । वदतः सूत्रमार्गेण भाषासमितिरिष्यते ॥१२४६।। देशसम्मतिनिक्षेपनामरूपतोतिता । संभावनोपमाने च व्यवहारे भाव इत्यपि ॥१२५०।। भाषा समिति-- अलीक, परुष, कर्कश आदि वचनोंसे रहित तथा सत्य और असत्यमूषा ऐसे दो प्रकारके वचनोंको बोलने वाले साधुके तथा सूत्रके अनुसार बोलने वाले साधुके भाषा समिति होती है ।।१२४६।। विशेषार्थ-वचनके चार भेद हैं सत्य, असत्य, सत्य सहित मषा और असत्यमृषा । सज्जनोंकी हितकारी वाणी सत्य कहलाती है "सतां हिता सत्या" जो सत्य नहीं वह असत्य है । जिसमें सत्य असत्य दोनों प्रकारके वचन हैं वह सत्यमृषा कहलाती है । जो सत्य भी नहीं है और असत्य भी नहीं है ऐसे अनुभय वचन असत्यमषा वचन हैं, इस पदका समास-"न सत्यं न मृषा च इति असत्य मुषा" है। इसमें एक नकार वाचक अकालोप होता है जैसेकि अनादि निधन शब्दमें अनिधनका अ लुप्त होता है । इन चार वचनोंमेंसे दो वचन साधुओंके ग्राह्य बताये हैं सत्य और असत्यमृषा । शास्त्रके अनुकूल वचन बोलना सूत्रमार्गसे बोलना कहलाता है इसप्रकार कार्यवश सत्य भाषण करना भाषा समिति है। यहांपर एक प्रश्न होता है कि सत्य महाव्रतमें सत्य बोलने का आदेश है पुन: भाषा समिति में भी सत्य वचनकी बात है तथा दशधर्मों में सत्य एक धर्म भी है, इन सब में क्या अंतर है ? इसका उत्तर देते हैं-सत्य महावत में साधु तथा असाधु दोनोंके साथ सत्य बोला जाता है अधिक भो बोल सकता है, भाषा समितिमें उन्हीं पुरुषोंके साथ बोलता है किन्तु थोड़ा बोलता है और सत्य धर्मका पालन करनेवाला साधु केवल साधुजनों के साथ ही बोलेगा। हां वह उनके साथ अधिक भी बोल सकता है। यही इन तीनोंमें अंतर है। सत्यवचन के दश भेददेश सत्य, सम्मति सत्य, निक्षेप सत्य, नाम सत्य, रूप सत्य, प्रतीति सत्य,
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy