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अनुशिष्टि महाधिकार
[ ३५३ तस्मान मनोवचः कायप्रयोगेषु समाहितः । भव त्वं सर्वदा जातस्वाध्यायध्यानसंगतिः ।।१२४७।। मार्गोद्योतोपयोगानामालंबस्य च शुद्धिभिः । गच्छतः सूत्रमार्गेण मर्यासमितियंतेः ।।१२४८।।
-- --- -- - -- इसप्रकार गुप्तियोंका महत्व जानकर हे क्षपक ! तुम मनका प्रयोग तथा वचन एवं कायके प्रयोगमें सदा सावधान होकर वरतना अर्थात् मनके खोटे विचार कुवचन और शरीरकी कुचेष्टा या व्यर्थको क्रिया इन सबको रोककर स्वाध्याय और ध्यान में तत्पर होवो ।।१२४७।।
__ ईर्या समितिका स्वरूप-- मार्गशुद्धि, जझोतशद्धि, उपयोग शुद्धि और आलंजन शुद्धि इन चार शुद्धियों के द्वारा आगमानुसार गमन करनेवाले साधुके ईर्यासमिति होती है ।।१२४८।।
विशेषार्थ-साधु गमनागमन करते समय बस स्थावर जीवोंकी रक्षा करता है । वह कभी भी व्यर्थ गमन नहीं करता, रातमें गमन नहीं करता अपने नेत्रोंकी ज्योति ठोक रहनेपर ही गमन करता है और सूर्य के प्रकाशमें गमन करता है। इसीको बताते हैं-मार्ग शुद्धि-गमनके मार्ग में अंकुर, हरितकाय, त्रस चींटी आदिको प्रचरता नहीं होना तथा वह मार्ग स्त्री, पुरुष, पशु, सवारी आदिके गमनागमनसे प्रासुक हुआ हो या धूपसे तपा हो वह मार्ग मार्गशुद्धि कहलाता है। उद्योत शुद्धि-दिनमें सूर्यके प्रकाशमें चलना अन्य चन्द्र आदिके प्रकाश में नहीं, यह उद्योत शुद्धि है। उपयोग शुद्धिचलते समय जीव है या नहीं इत्यादि रूप मार्गमें अपने उपयोगको केन्द्रित करके चलना उन्मनस्क होकर नहीं चलना, पैरके रखने उठाने में सावधानी रखना इत्यादि उपयोग शुद्धि कहलाती है । आलंबन शुद्धि-गुरु वंदना, निषद्या-वंदना, तोथं वंदना, अपूर्व शास्त्र पठन आदि हेतुसे विहार करना, व्यर्थ घूमने के लिये नहीं, यह आलंबन शुद्धि कहलाती है । चलते समय न मंद गमन हो म अति शीघ्र । आगेको चार हाथ प्रमाण भूमिको देखते हुए चलना । मार्गमें खेल नाटक, नट, स्त्री आदिका अवलोकन करने हेतु खडे नहीं होना, कूदकर नहीं चलना, मदभरी चालसे नहीं, दुष्ट पशुओंको दूरसे परिहार करके चलना इत्यादि सूत्रानुसार गमन कहलाता है । इसप्रकार ईर्यासमितिका पालन करते हुए साधुके कर्मबंध नहीं होता है ।