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मरणकण्डिका नार्थे संचीयमानेऽपि पुरुषो जातु तृष्यति । अपथ्येन यथा व्याधिोभो लाभेन वद्धते ।।११६६॥ नदोजलरिवाम्भोधिरिधनरिव पावकः । लोफैस्त्रिभिरपि प्राप्तर्न जीवो जातु तृप्यति ॥१२००॥ महाधनसमृद्धोऽपि पटहस्ताभिधोवणिक् । जातस्तृप्तिमनासाद्य लब्धधीदोघंसंसृतिः ॥१२०१॥
-.-.- .-..-.--.--.--.-.---.-...अपथ्य सेवनसे व्याधि बढ़ती जाती है वैसे धनके लाभसे पुनः पुनः लोभ बढ़ता जाता है ॥११९९।। जिसप्रकार नदियोंसे सागर और ईंधनोंसे अग्नि तृप्त नहीं होती है उसाप्रकार तीन लोक के प्राप्त हो जाने पर भी जोव कभी तृप्त नहीं होता है ॥१२००॥
महा समृद्धशालो पटहस्त नामका वणिक तृप्त न होकर धनमें अत्यंत आसक्त है बुद्धि जिसकी ऐसा होकर दीर्घ संसारो बन गया था ।।१२०१।।
फणहस्त-पटहस्त वणिकको कथाचंपापुरी में राजा अभयवाहन अपनी पूडरोका रानीके साथ सुखपूर्वक राज्य करता था । उस नगरी में एक महाकंजूस लुब्धक नामका सेठ था, सेठानी नागवसु थी। वर्षाऋतुका समय था । रात्रि के समय नदीमें बहकर आयी हुई लकड़ियोंको लुब्धक इकट्री कर रहा था। रानी पुडरीकाने इस दृश्यको देखा और लुब्धकको दरिद्री समझकर राजामे धन देने को कहा। राजाने पता लगाकर सेठको बुलाया और कहा कि तुम्हें जो द्रव्य चाहिये सो खजाने से ले जाओ। सेठने कहा-मुझे एक बैल चाहिये, राजाने कहा-गोशालामें से जैसा चाहिये वैसा बैल ले जाओ । सेठने उत्तर दिया राजन् ! मैं जैसा चाहता हूं वैसा बैल आपके गौशालामें नहीं है । तब आश्चर्ययुक्त होकर राजाने पूछा कि तुम्हें कैसा बैल चाहिये ? सेठने कहा-मेरे पास एक बैल तो है किन्तु उसका जोड़ा नहीं होने से चितित हूं | राजा विस्मित हो उसका बैल देखनेको चला, राजाको घरपर आये देख सेठ सेठानीने उनका स्वागत किया । सेठने तलघरमें स्थित, मयूर, हंस, सारस, मैना, अश्व, हाथी आदि पशु-पक्षियोंकी रत्न सुवर्णनिर्मित युगलोंको दिखाकर सेठने कहा कि इनमें एक बैल कम है उसके लिये मैं परेशान हूं। राजा उसका वैभव