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________________ ३२४ ] मरणकण्डिका पाराशरकी कथा--- पाराशर नामका एक जटाधारो तापसी था । उसने कुतप द्वारा कुछ विद्या सिद्ध की थी । एक दिन नौका द्वारा नदी पार कर रहा था । नीका को एक धीवरकी सत्यवती नामको लड़की चला रही थी । जो सुदर थी, उसपर पाराशर मोहित हो गया। धीवर से उसकी मांगकर जंगलमें उसके साथ रहने लगा। इसतरह वह तपस्वी लड़कोको देखकर कामुक हो अपने तपसे भ्रष्ट हो गया । अतः स्त्रीसे सदा दूर रहना ही साधुवतीको श्रेयस्कर है । कथा समाप्त । शकट नामके भ्रष्ट मुनिकी कथाएक शकट नामके मुनि आहारके लिये वनसे कौशांबो नगरीके निकट आ रहे थे, मार्ग कुछ लंबा था, नगरके बाहर एक कुटो में शून्य स्थान समझकर वे बैठ गये, वहां कुटिया में एक दासकर्म करनेवाली स्त्री रहती थी, मुनिने उसे पहिचान लिया कि पहले बालक अवस्थामें यह और मैं एक साथ पढ़ते थे । मुनि अपने आहारके प्रयोजनको भूल गये और उस जैनिका-जयनी नामकी स्त्रीसे वार्तालाप करने लगे। इसमें दोनोंका मन परस्परमें आकृष्ट हो गया और शकट मुनिने अपना निर्मल चारित्र उस स्त्रीके किंचित कालके संगतिसे ही छोड़ दिया और उसके साथ वह भ्रष्टाचारी रहने लगा। कथा समाप्त । कृपार नामके भ्रष्ट मुनिकी कथापाटलीपुत्र नगर में अशोक नामका राजा था उसका एक अत्यन्त पराक्रमी पुत्र कपार (कूपकार) नामका था । किसी दिन विहार करते हुए वरधर्म आचार्य संघ सहित नगरके बाह्य उद्यान में आकर ठहर गये नागरिक समह दर्शनार्थ जा रहा था, कपार राजकुमार भी उनके साथ गया, आचार्यसे वैराग्यप्रद धर्मोपदेशको सुनकर कमारको संसारसे विरक्ति हुई और उसने जिनदीक्षा ग्रहण की । किसी दिन एक विषम पर्वत पर वह कूपार मुनि ध्यानारूढ़ हुए । इधर उनके पिता अशोक राजाको पुत्र वियोगका अत्यंत दुःख हुआ, उस राजाके यहां एक गणिका वीरवती नामकी नृत्यकारिणी थी उसने राजाको कहा मैं आपके पुत्रको वापस ला सकती हैं, आप चिता शोक न करें। इतना कहकर उसने प्रायिका वेष लिया साथ में बहतसी दासियोंको भी
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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