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________________ अनुशिष्टि महाधिकार सात्यकि और रुद्रको कथागंधार देशमें महेश्वर नगरका राजा सत्यंधर था उसके पुत्र का नाम सात्यकि था, इसकी समाई राजा चेटककी पुत्री जेष्ठाके साथ हो चुकी थी। किसी कारण वश जेष्ठा राजपुत्रीने आर्यिका दीक्षा ली । जब सात्यकिको यह ज्ञात हुआ तो उसने भी समाधिगुप्त मुनीश्वर के समोप जिनदीक्षा ग्रहण की। एक दिन जेष्ठा आदि अनेक आर्यिकायें अपनो गणिनीके साथ महावीर भगवान्के समवशरण में जा रही थीं । मागमें पानी बरसने लगा इससे सब आर्यिका संघ तितर-बितर हो गया। जेष्ठी आर्यिका एक पुफामें पहुंचो वहां साडी खोलकर निचोड़ रही थी, गुफामें सात्यकि मुनि तपश्चरण कर रहे थे । वहां अकस्मात् जेष्ठाको देखकर उनका मन विचलित हुआ। दोनोंका समागम हुआ । अनंतर वर्षाके समाप्त होनेपर आर्यिका संघ एकत्रित हुआ । जेष्ठा ने अपनी गणिनी यशस्वती आर्यिकासे घटित घटना बतायो। गणिनोने अपवाद न हो इस उद्देश्यसे जेष्ठाको उसकी बड़ी बहिन राजा श्रेणिककी पट्टदेवी चेलनाके पास रखा । नव मास व्यतीत होनेपर बालक हुआ । उसके पालनका भार चेलना ने लिया । जेष्ठा पुनः छेदोपस्थापना प्रायश्चित्त द्वारा शुद्ध होकर तपमें लीन हुई । सात्यकिने भी अपने गुरुके निकट तत्काल पुनर्दीक्षा ग्रहण की । इस प्रकार स्त्रीके निकट होनेसे सात्यकि मुनि भ्रष्ट हुए। इधर उनका पुत्र चेलनाके पास वृद्धिंगत हुआ, उसका नाम रुद्र था। यह कर स्वभाव वाला होने से अपने समोपवर्ती बालकोंको पीटता रहता, इससे उलाहना आनेपर चेलनाने कुपित होकर कह दिया कि किसका पुत्र और किसको कष्ट दे रहा है ? इतना सुनकर रुद्रने राजा श्रेणिकसे अपने जन्मका वृत्तांत विदित किया और उसने उदास हो दीक्षा ली । बह ग्यारह अंग और दश पूर्व क्रमसे पढ़ रहा था। दसवें विद्यानुवाद पूर्वके अध्ययन पूर्ण होनेपर रोहिणी आदि विद्यायें उसके समक्ष उपस्थित हुई। रुद्रमुनिने लोभवश विद्यायें स्वीकार करली । अब वह स्वच्छंद भ्रमण करने लगा । एक दिन वनमें सरोवर पर अनेक राजकन्यायें स्नानार्थ आयी थीं, उन्हें देखकर रुद्र कामबाणसे विद्ध हुआ और विद्याके बल से सबको हरणकर अपना बना लिया। कन्याओंके पिताने उससे युद्ध किया किन्तु रुद्र के पास विद्याका बल होने से राजा हार गये और इसतरह रुद्र मुनि भ्रष्ट होकर उन स्त्रियोंके साथ रमने लगा । अंतमें मरकर नरक गया। इसप्रकार स्त्री संसर्गसे रुद्रकी दुर्गति हुई । सात्यकि और रुद्रकी कथा समाप्त ।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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