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मरणकण्डिका
रष्टश्रुतानुभूतानां विषयाणां चिस्मृतिः । मारससर्ग योऽपि विरहेऽप्यस्ति योषितः ।।११५०॥ पद्धो गणी तपस्वी च विश्वास्यो गुणवानपि । अचिराल्लभते दोषं विश्वस्तः प्रमकाजने ॥११५१।। कि पुनविकृताकल्पाः स्वैरिणः शेषसाधवः । नारी संसर्गतो नष्टा न संति स्वल्पकालतः ॥११५२।। जंनिकासंगतो नष्टश्चरणाच्छकटो यतिः । वेश्यायाः सह संसनिष्ट: कुपवरस्तथा ॥११५३॥ रुद्रः पाराशरो नष्टो महिलारक्तया रशा। देवर्षिः सायाकदेवपुत्रश्च क्षणमात्रत: ॥११५४।।
-..-.--- -- . -. - - -.. ... .. -- - - -.-. -.स्त्रो का विरह भी होवे अर्थात् स्त्री वर्तमानमें निकट नहीं है उस वक्त देखे सने तथा अनुभूत विषयोंकी रुचि तथा स्मृति हो जाया करती है, वह स्मृति और रुचि भी एक तरहका स्त्री संपर्क ही कहा जाता है ।।११५०।।
पुरुष चाहे वृद्ध है, आचार्य है, तपस्वी है तथा सभोके द्वारा विश्वसनीय है, गुणवान् भी है, किन्तु यदि वह स्त्रीजनों पर विश्वास करता है तो शोन्न हो अपयश आदि दोषको प्राप्त होता है ॥११५१।। जब महामुनि महा तपस्वीजनोंकी ऐसी बात है, तो जो विकृत मनयुक्त हैं स्वच्छंद है ऐसे शेष साधु नारोके संपर्कसे स्वल्पकालमें क्या नष्ट नहीं होते ? होते ही हैं ।। ११५२॥ जैनिका नामकी स्त्रीके संगसे शकट मुनि चारिश्रसे भ्रष्ट हुए तथा कुपवर (कूपार) मुनि वेश्याके साथ संसर्ग करनेसे नष्ट हुए थे। रुद्र तथा पाराशर महिलाओंको आसक्ति पूर्वक देखने से नष्ट हुए थे और देवर्षि और देवपुत्र तथा सात्यकि स्त्री संपर्कसे क्षणमात्रमें नष्ट हुए थे ।।११५३।११५४।।
विशेषार्थ-यहां पर ब्रह्मचर्य महाव्रतका अतिविस्तार पूर्वक वर्णन करते समय स्त्री संगसे होने वाले दोष हानि आदिको आचार्य बता रहे हैं । प्राचीन काल में स्त्रीसंगसे जिनकी हानि हुई, भव भवांतर नष्ट हुए, उनका कथन करते हुए यहां सात व्यक्तियोंके नाम कंठोक्त बताये हैं। उन सातों में से एक अजैन साधु था शेष सभी दिगंबर जैन मुनि थे। इन सातोंकी कथा यहां अति संक्षिप्त बतायी जाती है