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मरणकण्डिका
नारीणां दर्शनोद्द श आकृष्यते मनो
भाषणप्रतिभाषणः I नृणामयस्कांतंरिवायसम् ॥ ११४० ॥
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हासोपहासलीलाभिगुप्तमात्रप्रकाशनंः विलासविभ्रमं हविर्भावः सह गमागमः
।। ११४१ ।।
सन्मनेः कोमलैर्वाक्यै विस्र' भभाषणैः गति स्थिति तिकोडानमंविन्बोक मोहनः arateलोकनैः स्त्रीणां वैराग्यं ह्रियते नृणाम् । शरीरस्पर्शिभिः क्रुद्धः पन्नगैरिव जीवितम् ।।११४३ ।।
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।। ११४२ ।।
योषितां नर्तनं गानं विकारो विनयो नयः । द्रावयन्ति मनो नृणां मदनं पावका इव ।।११४४॥
भाषण प्रतिसंभाषण करनेसे पुरुषोंका मन उनके प्रति आकर्षित हो जाता है, जैसे चुंबक द्वारा लोह आकर्षित होता है ।। ११४० ॥ नारियोंके हास्य मंद मीठी मुस्कान और लीला पूर्वक गमन आदि क्रियाओंसे, उनके द्वारा गुप्त अंग-स्तन आदिके दिखाने से, कटाक्षपूर्वक अवलोकन विलासपूर्ण चेष्टा अर्थात् नेत्रोंका मटकाना, भौंहे चलाना और हावभाव क्रियाओंसे उनके साथ देशादि गमनागमन करनेसे पुरुषका मन चंचल हो जाता है ||११४१।। मनके हरने वाले कोमल वाक्यों द्वारा हृदयके लिये संतुष्टिकारक वचनों द्वारा तथा उन स्त्रियोंके साथ विश्वास युक्त भाषण करना, मदभरी चाल चलना, कमर में हाथ रखकर खड़े होना, शरीरकी कांति, कोड़ा, मजाक विव्वोक अर्थात् दो भौंहे के बीच भागको सिकोड़ना, मोहन इन क्रियाओं द्वारा तथा टेढ़ी नजर से देखना इत्यादि स्त्रियोंकी चेष्टाओंसे पुरुषोंका वैराग्य नष्ट किया जाता है । जैसे जिनके शरीरका स्पर्श किया गया है और उस कारणसे जो क्रोधित हो गये हैं ऐसे सर्पों द्वारा जीवन नष्ट किया जाता है ।। ११४२ ।। ११४३॥
स्त्रियोंके नृत्य, गीत, विकारको देखना तथा उनका विनय करना, उनको कहीं ले जाना इत्यादि क्रियायें मनुष्योंके मनको पिघला देती हैं। जैसे मदनको अग्नि पिघला देती है ।। ११४४ । ।