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________________ ३४ (ग) के सिवाय और कुछ नहीं है। उसे भी सांसारिक धन्धा अथवा संसार परिभ्रमण का ही एक अंग समझना चाहिये । परिणामतः आपने सीकर (राज.) में अपार जनसमुह के बीच परम पूज्य दिगम्बर जैनाचार्य श्री शिवसागरजी महाराज से सम्पूर्ण अन्तरंग और बहिरंग परिग्रह ना याग करके पार्दिक शुदला दर्थी संवत् २०१८ के दिन महाव्रत अंगीकार कर मुनि-दीक्षा ग्रहण की। अब ब्र० राजमल मुनि श्री अजितसागर हुए । विद्या व्यसनी मुनि श्री संघ में पठन-पाठन के ही कार्य में संलग्न रहते थे, एक क्षण भी व्यर्थ न गंवाते थे, वि. सं. २०२५ तक अपने दीक्षागुरु के सान्निध्य में रहे और पिछले कुछ वर्षों से संघ का स्वतन्त्र नेतृत्व कर रहे हैं। और अब ई. सन् १९८७ से परंपरागत चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य परमेष्ठी के रूप में स्वपर हित में संलग्न हैं। अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी मुनिश्री संस्कृत-व्याकरण, जैन न्याय, दर्शन, साहित्य तथा धर्म आदि में निष्णात 'ज्ञानध्यानतपोरक्तः' साधु हैं। विधिवत् शिक्षण के बिना ही अपने श्रम और विचक्षण प्रतिभा से आपने जो जानार्जन कर उसका फल भी प्राप्त किया है, उसे देखकर अच्छे-अच्छे विद्वान् भी आश्चर्यान्वित हो नतमरतक हो जाते हैं । आज भी आपकी ज्ञानार्जन की रुचि और तल्लीनता सबके लिये ईष्र्या की वस्तु है। आप बड़ी रुचि के साथ संघस्थ साधुओं तथा आर्यिकाओं को अध्ययन कराते हैं तथा अन्य सचिशील जिज्ञासुओं की शंकाओं का सन्तोषप्रद समाधान करते हैं। ___आपकी दिन चर्या एवं कार्यप्रणाली देखकर लगता है कि जैसे एक परीक्षार्थी परीक्षा में सफलता प्राप्ति हेतु परीक्षा के दिनों में बड़ी तन्मयता और परिश्रमपूर्वक अध्ययन में प्रवृत्त होता है, उसमे भी कहीं बहुत लगन मे पूज्य श्री आत्म कल्याणरूपी परीक्षा में सफलता हेतु सतत तैयारी कर रहे होते हैं। अध्ययन अध्यापन के अतिरिक्त आपकी रुचि दुष्प्राप्य एवं अप्रकाशित प्राचीन ग्रन्थों के प्रकाशन की भी रहती है । वर्षायोग में या बिहार-मार्ग में जहां भी आप जाते हैं, ग्रंथ भण्डारों का अवलोकन करते हैं और अप्रकाशित रचनाओं का संशोधन कर उन्हें प्रकाशित करने की प्रेरणा देते हैं। अद्यावधि आप द्वारा संशोथित तथा आपकी प्रेरणा से प्रकाशित निम्नलिखित कृतियां प्रकाश में आई हैं१. गणधरवलय पूजा २. श्रु तस्कंत्रपूजा विधान ३. सूक्तिमुक्तावली ४. सुभाषित मंजरी (२ भाग)
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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