________________
३४ (१)
५. सम्यक्त्वकौमुदी
६. परमाध्यात्मतरंगिणी
७. स्तोत्रादि संग्रह (नागर भंडार से संकलित ) ८. छाला सह १०. सुभाषितावली ६. सूक्तिमुक्तावली (संस्कृत-हिन्दी पद्य )
११. कवल चन्द्रायण व्रत विधान १३. दश धर्म
१५. धन्यकुमार चरित
१२. कथा चतुष्टय १४. लोकार्धसूक्तिसंग्रह १६. सर्वोपयोगी श्लोकसंग्रह
प्रस्तुत ग्रंथ मरणकण्डिका ग्रंथ भी आपकी सत्प्रेरणा से प्रकाशित हो रहा है, जो अभी तक हिंदी अनुवादरूप से अप्रकाशित था ।
भी देते हैं। सभी ( जीवन के प्रारंभ
महाराज श्री द्वारा संकलित ग्रंथ सन्दर्भ ग्रंथों का काम स्वाध्यायियों के लिये वे परम उपयोगी हैं । मात्र सत्तरह वर्ष का का) काल आपने घर में व्यतीत किया। विवेक जागृत होते ही आप विरक्त हुए और तब से अनवरत वही विरक्तता पुष्ट होती गई ।
दिनांक ७ जून १६८७ को उदयपुर में विशाल जनसमूह के समक्ष चतुविध संघ के सान्निध्य में आ. कल्प श्रुतसागरजी महाराज के आदेश से आपको आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया है। आ. शांतिसागरजी महाराज की परम्परा में आप चौथे आचार्य हैं ।
अब तक आपने अपने कर-कमलों से १० मुमुक्षुओं को क्षुल्लक, आर्यिका एवं मुदिक्षा प्रदान की है। विशाल संघ का नेतृत्व करते हुए आप पंचाचार के पालन में स्वयं सदैव तत्पर रहते हैं और केवल संघ के ही नहीं अपितु सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज के श्रद्धेय एवं वंद्य हैं ।
आप श्री अपनी साधना में और तेजस्वी बनें, इसी भावना के साथ मैं आपके पावन चरणों में सविनय श्रद्धायुक्त त्रिधा नमोस्तु पूर्वक भक्ति पुष्प अर्पित करता हूँ ।