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________________ मरणकण्डिका तरुणस्यापि वैराग्यं शीलवृद्धन जायते । क्रियते प्रस्तुतक्षीरा वस्सस्पर्शन गोर्न किम् ॥११३४।। भी स्त्री संपकसे दूर रहकर सदा विद्याभ्यास कला आदिमें हो लगा रहता था। किसी दिन माता आदि कुटू बीके द्वारा किये गये उपायसे वह बसंतसेना वेश्या पर मोहित होकर उसीके यहां रहने लगा। घरका सब धन बरबाद हुआ। परिवारको बहुत पश्चात्ताप हुआ लेकिन अब क्या हो सकता था ? जब चारुदत को धन रहित देखा तब वसंतसेनाकी माताने कपटसे उसे घरसे बाहर निकाल दिया। चारुदत्त अत्यंत लज्जित एवं दुःखो होकर धनोपार्जनके लिये विदेश यात्रा करता है धन संग्रहकर जहाज द्वारा जैसे हो वापिस लौटता है कि जहाज तुफान द्वारा डूब जाता है। पुनः अनेक कष्टोंका सामना करते हुए धन कमाता है किन्तु दुर्दैववश फिर जहाज डूबता है ऐसा सात बार होता है किन्तु आयुके प्रबल होनेसे सातों बार लकड़ोके सहारे किनारे लगता है । इसो बाचमें एक ठग संन्यासी द्वारा अंधकूपमें गिराया जाता है वहाँ कपमें उसीके समान धोखेसे पहुँचे हुए मरणासन्न पुरुषको णमोकार मंत्र सुनाकर समाधि कराता है जिससे वह देव बनता है । वहाँसे किसो उपायसे निकल आता है । परिवारके रुद्रदत्त नामके व्यक्ति से भेंट होती है उसके साथ द्वोपांतर जानेका विचार होता है दुष्ट रुद्रदत्त बकरे को मारकर उसको खालको उल्टीकर उसमें बैठकर पक्षी द्वारा रत्नद्वीप में जानेका उपाय बताता है। चारुदत्तके मना करते हुए भी उसके सो जाने के बाद रुद्रदत्त बकरे को मारता है, चारुदत्तकी नींद खुलती है, उसने बकरेको मरते हुए णमोकार मंत्र सूनाया । द्वीपांतर में चारुदत्त पहुंचा । पापी रुद्रदत्त बीच में मर गया। उक्त द्वीपमें चारुदत्त को महामुनिके दर्शन होते है । वहांसे विद्याधरकी सहायतासे वह अपने चंपापुर में सुरक्षित पहुंच जाता है । इसप्रकार कुशीलकी संगतिसे चारुदत्तने महान कष्ट भोगे । कथा समाप्त । कोई पुरुष तरुण है किन्तु शीलवान् वृद्धको संगति करता है तो उस घद्ध मंगसे उसके वैराग्य भाव हो जाता है, जैसे बछड़े के स्पर्श से गाय दूध झराने लगती है ।।११३४॥ जो पुरुष हर्षपूर्वक गुरुजनों का कहा हुआ करता है. वृद्धोंसे युक्त वसतिका आश्रय लेता है, तरुण व्यक्तिकी संगति छोड़ देता है वह निर्मल ब्रह्मचर्य को रक्षा करता
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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