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________________ अनुशिष्टि महाधिकार निसर्गमोहितस्वान्सो दृष्ट्वा श्रुत्वाभिलष्यति । विषयं सेवित जोयो मधिरामिबमधपः ॥११३२॥ घायद सो शिमला वासः संवर्ग कोपतः । वेश्यामांससुरासक्तः कुलदूषणकारकः . ॥११३३॥ कुमार अवस्थासे ही स्त्री पुरुषों को एकत्र सहवासका निषेध है । कुमार कुमारियोंका एक साथ अध्ययन, यत्र तत्र घूमना इत्यादिका निषेत्र था । वर्तमानमें स्त्री पुरुषोंकी सह शिक्षा, स्त्री पुरुषोंका एक स्थान पर नौकरी आदि करना यह सब कामको उत्तेजनाका कारण है, नाटक सिनेमा आदि देखने में तो पूर्वोक्त तीनों कारण एक साथ मिल जाते हैं एकान्त, अंधकार और अश्लील दृश्य ( कामसेवन करते हुएके पांशिक दृश्य ) यहो कारण है कि अध्यात्म प्रधान भारत देशमें कुशील व्यसनकी वृद्धिका कोई ठिकाना ही नहीं रहा है । नूतन पोढीको अब सीता, चंदना, अंजना और सुदर्शन, जयकुमार आदि शीलवान नर-नारियोंकी कथायें काल्पनिक लगती हैं क्योंकि ऐसा दृढ़शोल उनमें खद में तो है नहीं और न कहीं दिखाई देता है। किन्तु जिन्हें आगामो भव में नपुंसक नहीं होना हो, नरकादि कुगतिमें जानेका भय हो वे नर-नारी अपनो प्राचीन परंपराका उल्लंघन न करें। वर्तमानके जीवन में भी जो कुशील आचरणसे, स्वास्थ्य हानि, भयंकर गुप्त रोग धनहानि आदि और अन्त में बेमौत मरण आदि इन दुःखोंसे छुटकारा तभी हो सकता है जब पूर्वाचार्यके वचनका पालन करें। एक तो संसारो जीवोंका निसर्गतः मोहयुक्त मन रहता है दूसरे यदि कामका विषय देखे सुने तो उसको देखकर सुनकर व्यक्ति कामकी अभिलाषा करने लगता है, विषय सेवन के लिये इच्छा करता है। जैसे मदिरा पायी मदिराको देखकर सुनकर मदिराकी इच्छा करता है ।।११३२।। चारुदत्त विनीत था तो भी संसर्ग दोषसे वेश्या मांस मदिरामें आसक्त हआ और कुलमें दूषण लगानेवाला हुआ ।।११३३।। चारुदत्तकी कथा-- ___ चंपापुरोमें भानुदत्त नामका सेठ रहता था। उसकी पत्नी सुभद्रासे चारुदत्त नामका गुणी पुत्र हुआ । कुमार कालसे विद्याका अधिक प्रेमी होनेसे विवाह होनेपर
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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