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________________ ३१६ ] मरपकण्डिका युवापि वृद्धशीलोऽस्ति नरो हि बद्धसंगतः । मानापमान भीशंकाधर्मबुनिपाविभिः ॥११२७।। बद्धस्तरणशोलोऽस्ति नरस्तरुणसंगतः । विभूभनिविशंकरदा प्रकृतियोगतः ।। इंद्रियार्थरति वो युवगोष्टया विमूढधीः । शौण्डगोष्टया यथा शौण्डः सुरां कांक्षति सर्वदा ।।११२६।। विश्रन्धाचपलाक्षो यः स्वैरी तरुणसंगतः । महिलाविषयं घोषं स शीघ्र लभते नरः ॥११३०॥ ध्वांतकांतकुशोलेहवर्शनैः करणस्त्रिभिः । कुत्सितो जायते भावः स्त्रीपुंसानामसंशयम् ॥११३१॥ शांत अप्रगट हो जाता है । जैसे पुष्पमें सुगंध है किन्तु उसमें जलका संयोग होनेसे वह सुगंध लोन मष्ट अप्रकट हो जाता है ।।११२६।। युवक पुरुष भी वृद्ध संगरो युद्ध जैसे स्वभाव शीलबाला या शांत हो जाता है । वह वृद्धका समागम करनेवाला तरुण, मान, अपमानके भयसे, शंकासे और धर्म बुद्धि तथा लज्जासे वृद्ध जैसा प्राचरण करता है ॥११२७।। कोई पुरुष वृद्ध है किन्तु तरुण की संगति की है तो वह भी तरुणके शीलस्वभाव जैसा बन जाता है जैसे तरुण पुरुष स्त्रियोंपर विश्वास कर भय रहित निःशंक होता है, स्वभावसे मोहयुक्त होता है वैसे उसकी संगतिमें वृद्ध हो जाता है ।।११२८।। तरुणकी गोष्ठी में बैठने से जीव विमूढ बुद्धिवाला हुआ इन्द्रियों के विषयोंमें प्रेम करनेवाला हो जाता है शराबीको गोष्ठी में बैठने से शराबी हुआ शराबको इच्छा करता है ।।११२९।। जो मनष्य तरुणकी संगतिमें आया है बह स्त्रियों पर विश्वस्त होता है, उसकी इन्द्रियां चंचल होती हैं, स्वच्छंद होता है वह शीघ्र ही महिलाके संबंधसे होनेवाले दोषको प्राप्त होता है ।।११३०।। स्त्री और पुरुषों के इन तीन कारणोंसे कुत्सित भाव होते हैंअंधकार एकान्त और काम सेवन करते हुए स्त्री पुरुषको देखना ।।११३१।। भावार्थ-स्त्री और पुरुषके एकान्तमें अकस्मात् मिलनेसे अथवा अंधकार होनेसे अथवा काम सेवन करते हुए स्त्री पुरुषको देखनेसे, इन तीन कारणोंसे स्त्री पुरुषों के मन में काम वासना जाग्रत होती है । भारतीय परंपरामें इसीलिये प्राचीन काल में
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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