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मरण
मांसपेशीशिरास्नायुशतान्यंगे पंच सप्त नव प्राज्ञाः शिराजालानि चत्वारि शिरामूलानि षट् चंद
यथाक्रमम् 1 सर्वदापि प्रचक्षते ।। १०७३।
कंडराणि च षोडश ।
मांसरज्जुद्वयं तथा ॥ १०७४ ।।
कालेयकानि सप्तांगे त्वचः सप्त निवेदिताः । सर्वत्र कोटि लक्षाणामशीती रोमगोचरा ।। १०७५।। आमपक्वाशयस्थानं षोडशैत्रष्टयः 1 कुथितस्याश्रयाः सप्त शरीरे संति मानुषे || १०७६ ॥ नव संति व्रणास्यानि मुच्यमानानि कश्मलम् । तिस्रः स्थूणाशतं देहे मर्म सप्तसंयुतं ।। १०७७।। शुक्रमस्तिष्कमेदांसि प्रत्येकं सूरयो विदुः । स्वकीयांजलिमानानि मनुष्याणां कलेवरे
॥१०७८६ ॥
अलिमितं पित्तं सांज लित्रयप्रमा श्लेष्मा पित्तसमो रक्तमर्द्धादकमितं मतम् ॥१०७६॥
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शरोरके अवयवोंका वर्णन
इस मानव के शरीर में तीनसो हड्डियां हैं जो कि मज्जा नामकी दुर्गंध धातुसे युक्त हैं तथा संधियां भी तोनसी हैं ।। १०७२ || शरीर में मांस पेशियां पांच सौ शिरायें सातसी और स्नायु नौसी हैं ऐसा प्राज्ञ कहते हैं ।। १०७३|| तथा शिराओंके जाल चार, सोलह कंडरा, छह शिराओंके मूल और मांस रज्जु दो हैं ।। १०७४ ।। शरीर में कालेयक सात हैं, सात त्वचा हैं और अस्सी लाख कोटि रोम हैं ।। १०७५ || आमाशय और पक्वाशय में सोलह आंतें हैं तथा दुर्गंधके आशय सात हैं ।। १०७६ ।। इस देह में व्रण मुख नी हैं जो दुर्गंधिको झराते हैं। तीन स्थूणा वात पित्त कफ हैं और मर्मस्थान एक सो सात हैं ।। १०७७ ।। मानवोंके शरीर में शुक्र, मस्तक और भेद ये तीनों अपने अपने हाथसे अजुली प्रमाण है ऐसा आचार्य कहते हैं ।। १०७८ || शरीर में छह अंजुली प्रमाण पित्त हैं, तीन अंजुली प्रमाण वसा नामा धातु है । कफ पित्त के समान छह अंजुली है, रक्त आधा आढक [बत्तीस पल प्रमाण ] है ।। १०७६|| मल छह प्रस्थ प्रमाण है मूत्र आधा