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________________ अनुशिष्ट महाधिकार शीलवंत्यो विलोक्यते ता धन्या बुधवंदिताः । समर्था: शोतलोकतु या ज्वलंतं हुताशनम् ।११०४२ ॥ सर्वशास्त्रसमुद्राणां वंदितानां जगत्त्रये । सवित्र्यः सन्ति शीलाढयाः साधूनां चरमांगिनाम् ॥ १०४३ ॥ निमज्ज्यंते न पानीयनियंते न नदीजलं । सत्यो व्यालेर्न भक्ष्यन्ते न दह्यन्ते हुताशनः ।। १०४४।। मोहोदयेन लायंते ही सामनुभाः शुभाः । परिणामा इति ज्ञात्वा मोहो निद्यो न जन्तवः ।। १०४५। [ २९५ सुनी जाती हैं जिन्होंने अपने शील प्रसादसे देवेन्द्रों द्वारा प्रातिहार्य प्राप्त किये थे ।। १०४१ ।। भावार्थ-सीता, अंजना, द्रौपदी, अनंतमती, चंदना आदि अनेक श्रेष्ठ स्त्रियाँ इस पृथिवीमें प्रसिद्ध हैं कि जिन्होंने अपने पावन शीलव्रत द्वारा देवोंका भी आसन कंपायमान किया या देवोंके द्वारा जिन्होंने सिंहासन, छत्र चामर आदि विभूतिको प्राप्त किया था । जैसे सोता जब अपने शीलको परीक्षा दे रही थी उस वक्त देवने अग्निका जल करके उसको सिंहासन पर बिठाकर जयकार, दुंदुभिनाद, पुष्पवृष्टि आदि अतिशय किये थे । जब अंजना भयानक बनमें गुफा में रही थी तब उसके पास आते हुए सिंहको देवने हो भगा दिया था ऐसे अन्य अन्य नारियोंका उज्ज्वल ब्रह्मचर्यका प्रताप शास्त्रों में पढ़ने को मिलता है | अतः सब स्त्रियां दुष्टा कुलटा है ऐसा नहीं समझना न सब पुरुष ही दुष्ट कुलटे हैं न सब स्त्रियां कुलटा हैं । बुद्धिमान द्वारा वंदित शीलवान् नारियां देखी जाती हैं वे नारियां इस संसार मैं धन्य हैं जो कि जलती हुई अग्निको ठंडा करने में समर्थ हैं ||१०४२ ।। जो समस्त शास्त्र समुद्रोंके पारगामी हैं, तीन लोक में वंदित हैं, चरम शरीरी हैं ऐसे साधुओं की शील संपन्न मातायें भी होती ही हैं ।। १०४३।। जो सत्य है वह जल द्वारा डुबाया नहीं जा सकता, नदी जल द्वारा बहाया नहीं जा सकता, जंगली पशुओं द्वारा भक्षण नहीं किया जा सकता और अग्नि द्वारा जलाया नहीं जासकता है ।। १०४४।। इस संसार में स्त्री और पुरुष दोनोंके ही मोहके उदयमे शुभ और अशुभ दोनों तरह के परिणाम हुआ करते हैं ऐसा जानकर मोहकी निंदा करना चाहिये, जीवोंकी नहीं ।। १०४५ ।।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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