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________________ २९६ ] मरण कण्डिका साधारणेऽत्र सर्वेषां जीवानामनिवारिते । तुष्टाः सन्ति परिणामास्तत: कार्योऽस्य निग्रहः ॥१०४६॥ श्लाघ्या भवति नार्योऽपि शुद्धशीला महीयसा । स्त्री पुमानिति कुर्वन्ति शेमुषी मंवमेधसः ।।१०४७।। सामान्येन ततो नेह निदिताः सन्ति योषितः । शुसशीला न गच्छति दूषणं हि कदाचन ॥१०४८।। छंद रथोद्धतागुखशोलकलितासु जायते नांगताय मागितमलोपस । प्रास्पदं हि विदधाति तामसं हंसरश्मिषु कदाचनापि कि ॥१०४६॥ इतिस्त्री दोषाः। इस विचित्र विश्व में सभी जीवोंके बिना किसी रुकावटके सब तरहके-भले बरे कशील और सुशील परिणाम होते हैं इसलिये जो दुष्ट परिणाम हैं उनका कारण जो मोह है उसका निग्रह करना चाहिये ॥१०४६।। संसारमें शुद्ध शीलयुक्त नारियां भी महापुरुषों द्वारा प्रशंसनीय होती हैं, जो मंद बद्धि हैं वे ही यह स्त्री है यह पुरुष है ऐसी भेद बुद्धि करते हैं । आशय यह है कि स्त्री हो चाहे पुरुष। यदि दुष्ट कुशीली है तो दोनों ही निंदनीय हैं और यदि शोलवान सक्षाचारी हैं तो दोनों प्रशंसनीय हैं इस दृष्टि से दोनोंमें भेद नहीं है ।।१०४७।। इसीलिये तो सामान्यतया स्त्रियां ही निंदित नहीं की गयी हैं अर्थात् कोई यह न समझे कि स्त्रियों की ही केवल निंदा की है । स्त्री हो चाहे पुरुष यदि कुशील दुराचारी हैं तो दोनों निंदित हैं। शुद्ध शील स्वभाववाली स्त्रियां कभी भी दूषणको प्राप्त नहीं होती हैं ।।१०४८॥ शुद्ध शीलवान स्त्रियोंमें चारित्र मलिन नहीं होता, क्या कभी हंस रश्मियोंमें तामस स्थान पाता है ? नहीं पाता अर्थात हंस सदृश उज्ज्वल किरणोंमें जैसे मलिन अंधकारका रहना संभव नहीं वैसे शुद्ध शीलवतो नारियों में मलीन आचरण संभव नहीं है ।।१०४९॥
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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