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मरणकण्डिका शलाकापुरुषास्ताभिर्जन्यंते भुवनाचिताः । धात्रीभिरिव शुद्धाभिर्मणयः पुरुतेजसः ॥१०३६॥ पुरत्नानि न जायते शुद्धसोलाः स्त्रियो विना। विना नीरबमालाभिः पानीयानां क्व संभवः ॥१०३७॥ प्राजन्म विषयाः काश्चिष्ब्रह्मचर्यमखंडितम् । धरंति दुर्धरं धन्या ज्वलद्दीपमिबोज्ज्वलम् ॥१०३८॥ कन्याभिरायिकाभिरच घीयते दुश्चरं तपः । विच्छिद्य शमशस्त्रेण मन्मथप्रतिबन्धकम् ॥१०३६॥ ध्रियते शुद्धशोलाभिर्यावजीवमदूषितम् । पतिब्रह्मन्नतं स्त्रीभिः पराभिः पूजितं सताम् ॥१०४०।। देवेभ्यः प्रातिहार्याणि प्राप्ता विख्यातकीर्तयः । योषाः शोलप्रसादेन श्रूयंते बहवो भुवि ।।१०४१॥
ऐसी धन्य माताओं द्वारा तीन भुवनोंमें पूजित शलाका महापुरुष उत्पन्न किये जाते हैं, जैसेकि शुद्ध पृथ्वो द्वारा उत्कृष्ट तेजवाले रत्न उत्पन्न किये जाते हैं ।।१०३६।। शुद्ध शीलवाली महिलाओं के बिना तीर्थकर, बलदेव जैसे नररत्न उत्पन्न नहीं हो सकते, जैसे मेघ मालाओंके बिना जलकी उत्पत्ति कहांसे हो सकती है ? नहीं हो सकती ११०३७।। इस धरातल पर विधवा स्त्रियां विवाह होते ही तत्काल पतिदेवके मृत्यु होनेसे ब्रह्मचर्यको अखंड रखतो हैं अथवा पतिके मृत्यूके पश्चात् सदा ब्रह्मचर्यकी रक्षा करती हैं। अनेक धन्य स्त्रियां प्रारंभसे जलते हुए दीपकके समान उज्ज्वल दुर्धर ऐसे ब्रह्मचर्यको धारण करती हैं ।।१०३८।। कुमारी कन्याओं द्वारा, आयिकाओं द्वारा प्रशमभावरूप शस्त्रसे मन्मथ प्रतिबंधको छेदकर घोर तप तपा जाता है अर्थात कन्या आदि काम वासनाका त्यागकर उत्कृष्ट ब्रह्मचर्य पालन करती हैं, आर्यिकायें ब्रह्मचर्यके साथ उन-उन तप करती हैं ऐसी नारियां धन्य हैं निर्दोष हैं ।।१०३९।। अनेक अनेक शुद्ध स्वभाव वाली श्रेष्ठ स्त्रियां सज्जन पुरुषों द्वारा पूजित निर्दोष पति ब्रह्मवत अर्थात् अपने एक पतिको छोड़कर अन्य सभी पुरुषोंके त्याग रूप व्रतको यावज्जीव तक पालन करती हैं ॥१०४०।। विख्यात है कीत्ति जिनकी ऐसी बहुतसो महिलायें इस पृथिवोपर