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अनुशिष्टि महाधिकार
[२६३ योषास्त्यजति विद्वांसो दोषाज्ञात्वेति दूरसः । व्याघ्रीरिव कृपाहीमाः परामिष परायणाः ॥१०३०।। दोषा ये संसि. नारीणां नराणां ते विशेषतः । द्रष्टव्या दुष्ट शीलानां प्रकृष्टबलतेजसाम् ।।१०३१।। व्याघ्राइस परित्याज्या नरा दूरं कुचेतसः । रामाभिः शुद्धशीलाभी रक्षतीभिनिजं व्रतम् ।।१०३२।। यथा नरा विमुंचते बनिता ब्रह्मचारिणः । त्याज्यास्ताभिर्नरा ब्रह्मचारिणीभिस्तथा सदा ।।१०३३॥ न रामा निखिलाः संति दोषवन्त्यः कदाचन । देवता इव श्यंते वंदिता बहवः स्त्रियः ॥१०३४।। मातरस्तीर्थकतणां भवनोयोतकारिणां । जायंते बनिता धन्याः शक्रवंयक्रमांबुजाः ॥१०३५।।
------ ... ... . ..- . -- इनको दरसे ही छोड़ देते हैं, जैसे निर्दयी, परके मांस में आसक्त ऐसी ब्याघ्रियों को दरसे ही छोड़ देते हैं ॥१०३०।।
इसप्रकार यहांतक पुरुषोंको स्त्री संबंधी दोषोंको बतलाकर उनसे विरक्त रहनेका उपदेश दिया, अब आगे स्त्रियोंको मोक्षमार्ग में स्थिर कराने हेतु उपदेश देते हैं...
जो दोष नारियोंमें कहे हैं वे दोष दुष्ट स्वभाववाले और उत्कृष्ट बल तेज वाले पुरुषों में भी विशेषतया देखने चाहिये अर्थात् पुरुषसे अपने मोहको हटाने के लिये पुरुषके दोषों को देखते सोचते रहना चाहिये ॥१०३१।। शुद्ध शीलवंती अपने ब्रह्मचर्य व्रतकी रक्षा करनेवाली स्त्रियों द्वारा खोटो बुद्धिवाले पुरुषों को दूरसे ही छोड़ देना चाहिये, जैसे कि व्याघ्रको दूरसे छोड़ देते हैं ।।१०३२।। जैसे ब्रह्मचारी पुरुषों द्वारा स्त्रियां त्याग दो जातो हैं वैसे ब्रह्मचारिणो स्त्रियों द्वारा पुरुष सदा त्याज्य होते हैं ॥१०३३।। सभी स्त्रियां दोष युक्त कभी भी नहीं होती, बहुतसी स्त्रियां देवताओं के समान वंदनीय भी देखी जाती हैं |११०३४।। तीनों लोकों में प्रकाश करनेवाले तीर्थकर प्रभूको मातायें इन्द्र द्वारा वंदनीय हैं चरण कमल जिनके ऐसी श्रेष्ठ धन्य महिलायें भी होती ही हैं ।। १०३५।।