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________________ अनुशिष्टि महाधिकार [ २६१ नामान्यपि दुरर्थानि जायते योषितामिति । समस्तं जायते प्रायो निषितं पापचेतसाम् ॥१०१८।। मत्सराधिनयायासक्रोधशोकायशोभियाम् । सर्वासां कारणं रामा विषाणामिव सपिणी ॥१०१६॥ कुलजातियशोधर्मशरीरार्थशमादयः । नाश्यते पोषया सर्वे वात्यया तोयदा इव ।।१०२०॥ पायकः सुखदारूणां आवासो दुःखपाथसाम् । प्रध्ययो व्रतरत्नानामनर्थानां निकेतनम् ॥१०२१॥ असत्यानां गृहं योषा वंचनानां वसुधरा । कुठारी धर्मवृक्षाणां सिद्धिसौधमहागला ॥१०२२॥ दोषाणामालयो रामा मोनानामिव वाहिनी । गुणानां नाशिका माया बतानामिव जायते ॥१०२३।। पापिनी स्त्रियों के नाम भी खोटे अर्थवाले हुआ करते हैं । ठीक ही है, क्योंकि पापी चित्तबालोंके समस्त मन वचन आदि प्रायः निंदित हुआ करते हैं ॥१०१८।। मत्सर, अविनय, कष्ट, क्रोध, शोक, अयश, भय इन सभोका कारण स्त्री है जैसे विषका कारण सर्पिणो है ।।१०१९।। स्त्री द्वारा कुल, जाति, यश, धर्म, शरीर, धन और प्रशभभाव आदि समस्त प्रशस्त पदार्थ नष्ट किये जाते हैं जैसे आंधी द्वारा मेघ नष्ट किये जाते हैं, ।। १०२० ।। सुखरूपो लकड़ियोंके लिये नारो पावक-अग्नि है, दुःखरूपी जलका मानो निवास स्थल है, व्रतरूपी रत्तोंके नाशका कारण है और सर्व अनर्थोका निकेतन ( घर ) नारी हो है ॥१०२१॥ स्त्री असत्य भाषणोंका गृह है, ठगाईको भूमि है, धर्मरूपी वृक्षोंको काटने वाली कुठारी नारी हो है, सिद्धि रूपो महलको यह महा अर्गल है ।।१०२२।। दोषोंका स्थान स्त्री है जैसे मछलियोंका स्थान नदी है गुणोंको नष्ट करनेवाली स्त्री है जैसे कि माया-छलकपट व्रतोंको नष्ट करनेवाली है ।।१०२३।। पुरुष प्रादिको बांधने के लिये स्त्री पाशके सहश है, उन पुरुषों को काटने के लिये तलवार समान है, छेदने के लिये पैना भाला है और इबने के लिये फँसनेके लिये, अगाध कीचड़ सदृश है ।।१०२४॥ यह नारी पुरुषोंका
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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