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________________ २६० ] मरणकण्डिका दोषाच्छादनतः सा स्त्री बर्वधविधानतः । प्रमदागविता प्राज्ञः प्रमावबहुलत्वतः ॥१०१३॥ नारिय॑तः परोस्त्यस्यास्ततो नारी निगद्यते । यतो विलीयते दृष्ट्वा पुरुषं बिलया ततः ॥१०१४।। कुत्सिता नुयंतो मारी कुमारी गदिता ततः । बिभेति धर्मकर्मभ्यो यतो भीरुस्ततोमता ॥१०१५।। यतो लाति महादोषं महिलाभिहिता ततः । अबला भण्यते तेन न येनास्ति बलं हृदि ।।१०१६।। जुषते प्रीतितः पापं यतो योषा ततो मता । पसो समय सुते ललाना भणिता ततः ।।१०१७।। भावार्थ-स्त्री अपने दोषको छिपाती ही है भले ही उसको प्रत्यक्ष देख लिया हो, कुलवंती नारी भी दोषको स्वीकार नहीं करेगी कि मैंने यह दोष किया है। उलठे यह दोष मुझमें है नहीं मैंने किया ही नहीं ऐसा कहती है जैसे गोह प्राणी किसी स्थानका आश्रय लेकर उसको इतना चिपक जाता है कि उसको कितना भी छुड़ाया जाय किन्तु उस स्थानको छोड़ ता नहीं । अथवा गोह पुरुषको देखकर अपनेको छिपानेकी कोशिश करता है वैसे ही स्त्री मुझे कोई देख न लेवे ऐसी कोशिश करती है । सैंकड़ों प्रयत्न करनेपर भो स्त्रो अपने हठको नहीं छोड़ती। अब यहां स्त्रीवाचक जो जो नाम हैं उनका निरुक्ति अर्थ बतलाते हैं दोषोंका आच्छदन करने से यह नारी 'स्त्री' कहलाती है वध करनेसे वध कहलातो है तथा प्रमादकी बहुलताके कारण उसे प्राज्ञपुरुष 'प्रमदा' कहते हैं ।।१०१३॥ पुरुष के लिये इससे बढ़कर अन्य कोई शत्रु नहीं है अतः "नारी" कही जाती है (न अरिः इति नारी) पुरुष को देखकर विलोन होती है-छिप जाती है अतः विलया है ।।१०१४।। पुरषके कृत्सित मरणका उपाय करनेसे "कुमारी" कहलाती है जिसकारणसे धर्म कार्यसे डरती है उस कारणसे "भोरु" नामवाली है ।।१०१५।। जिसकारणसे महादोष लाती है उस कारणसे महिला कहलाती है । जिसकारणसे हृदय बल नहीं रखती उस कारणसे "अबला" नामसे कही जाती है ॥१०१६।। प्रीतिपूर्वक पाप सेवन करनेसे "योषा" मानी जाती है, खोटे आचरण में लगी रहती है अत: "ललना" कही जाती है ॥१०१७।।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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