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मरणकण्डिका
गृहीतु शक्यते जातु परमाणुरपि ध्रु बम् । न सूक्ष्म योषितां स्वान्तं दुष्टानामिव चंचलम् ॥१००२॥ कुखः कंठीरवः सर्पः स्वोकतुं जातु शक्यते । न चित्तं दुष्टवृत्तीनामेतासामति भोषणम् ॥१००३।। रूपं संतमसि द्रष्ट विद्युद्योतेन पार्यते । चेतश्चलस्वभावानां योषाणां न कथंचन ॥१००४।। हरंति मानसं रामा नराणामनुवर्सनः । तावद्यावन्न जानंति रक्त कुटिलचेतसः ॥१००५॥ हसितः रोदनेर्वाक्यैः शपथविविधैः शठाः । अलीकर्मानसं पुंसां गृह्णन्ति कुटिलाशयाः ॥१००६॥ हरंति पुरुषं वाचा चेतसा प्रहरंति ताः । वाचि तिष्ठति पीयूषं विष चेतसि योषिताम् ॥१००७।।
हैं ।।१००१॥ कदाचित् परमाणुको ग्रहण कर सकते हैं-पकड़ सकते हैं किन्तु स्त्रियोंके सूक्ष्म मनको-सूक्ष्म अभिप्रायको ग्रहण नहीं कर सकते हैं । जैसे दुष्ट व्यक्तियों के चंचल मनको ग्रहण नहीं कर सकते वैसे नारीके चंचल मन को पकड़ नहीं सकते हैं ।।१००२।। कदाचित क्रोधित सिंह और सर्पको पकड़ सकते हैं किन्तु दुष्ट दुराचारिणी इन स्त्रियोंके अति भयंकर मनको पकड़ नहीं सकते हैं ॥१००३।। विद्य त् प्रकाश द्वारा अंधकारमें रूप देखना शक्य है किन्तु चंचल स्वभाववालो युवतियोंके चित्तको देखना किसी प्रकार भो शक्य नहीं है ।।१००४।। कुटिल चित्त वालो स्त्रियां पुरुषों के चित्तको अनुकूल प्रवृत्ति द्वारा तब तक हरण करती हैं जब तक कि उस पुरुषको अपने में अनुराग युक्त हुआ नहीं जानती अर्थात् अपने में पुरुषको आसक्त होनेतक उसके मनके अनुसार स्त्रियां चलती हैं परुषको अपने में आसक्त बनाके ही छोड़तो हैं ।।१००५॥ कुटिल मनवाली शठ स्त्रियां हँसी द्वारा रुदन द्वारा, विविध वाक्य और शपथ द्वारा एवं झूठ संभाषणों द्वारा पुरुषों के चित्तको ग्रहण करती है अर्थात् पुरुषको अपने वश में कर लेती हैं ।।१००६॥ दुष्ट स्त्रियां अपने वचनसे पुरुषको हर लेतो हैं तथा मनसे उसपर प्रहार करती हैं अर्थात् वाणो तो मीठी बोलती हैं और मन में उस पुरुषको नष्ट करनेका सोचती हैं। सच है स्त्रियोंके वचनमें तो अमृत है और मनमें विष भरा रहता है ।।१००७॥