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मरणकण्डिका
पंचयन्ति नरान्नार्यः समस्तानपि हेलया । जानंति वचनं पोस्नं तदीयं न नराः पुनः ॥६६३॥
छंद-वंशस्थयथा यथा स्त्री पुरुषेण मन्यते तथा तथा सा कुरते पराभवं । यथा यथा कामवशेन मन्यते तथा तथा सा कुरुते विटंबनाम् ॥६६४|| भवति सर्वदा योषा मत्तास्तंबेरमा इव । स्वं दासमिव मन्यते पुरुषं मूढमानसाः ॥६५॥
छंद-रथोद्धताशीलसंयम तपोबहिर्भवास्ता नरांतरनिविष्टमानसाः । चितयन्ति पुरुषस्य सर्वदा दुःखमुग्रमपकारिणो यथा ॥६६६।।
प्रिय होता है और धनहीन निगंध फूलके समान अप्रिय होता है । युबक ताजी मालाके सदृश प्रिय और वृद्ध मुरझाई माला सदृश अप्रिय होता है । निरोग पुरुष रसीले गन्नेके समान प्रिय और रोगी नीरस गन्ने के समान अप्रिय होता है ।।९९२।।
नारिया समस्त पुरुषोंको लीला मात्रसे ठग लेती हैं अर्थात् हास्य, शपथ, मधुर किन्तु झूठे वचन आदिसे पुरुषको अपने में फसाती हैं, पूरुषका वचन किस अभिप्राय का है, कपट युक्त है या नहीं इत्यादि बातोंको नारी तत्काल जान लेती है किन्तु उस नारीके कपट प्रयोगको पुरुष नहीं जान पाते ॥१३॥
पुरुष जैसे-जैसे स्त्रीकी बात मानता है वैसे-वैसे वह स्त्री पुरुषका तिरस्कार करती है । जैसे-जैसे कामवश पुरुष द्वारा उसकी मान्यता होती है वैसे वह नारी पुरुषका अपमान करती है ।।९९४।।
मढ स्त्रियां अपने पति को दासके समान मानती हैं, महिलायें सर्वदा हो हाथियोंके सदृश मदोन्मत्त रहती हैं ॥६६॥ जिनका मन पर पुरुषोंमें लगा हुआ है, जो शील, संयम, तपसे बहिभूत-रहित हैं ऐसी महिलायें सदा ही अपने पतिके लिये भयंकर दुःख देनेको सोचती हैं, जैसे कि अपकारी व्यक्ति दुःख देनेकी सोचते हैं ||६६६॥