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मरणकण्डिका
बोरयत्यापि शूलस्थस्तेन छिन्नोष्ठया निजः । ओष्ठश्च्छिन्नो ममानेन पापयेत्युदितं मृषा ॥९८७॥ म्याघ्र विषे जले सर्प शत्रौ स्तेनेऽनले गजे । स विश्वसिति नारोगां यो विश्वसिति दुर्मनाः ॥१८॥
शूलोपर स्थित यारके द्वारा जिसका ओठ छिन्न हुआ ऐसी पापी दुराचारिणी वोरवतीने राजाके पास जाकर झूठ कहा कि मेरे पति ने मेरा ओठ काट दिया है ।।९८७॥
वीरवतीको कथादत्त नामके वेश्यको पत्नीका नाम बीरवती था यह एक चोरके प्रेममें फंसी थी । एक दिन चोरी करते हुए रंगे हाथ वह चोर पकड़ा गया 1 उसे राजाने शलीपर चढ़ानेको सजा दी। चंडालने उसे श्मशानमें ले जाकर शूलीपर चढ़ा दिया। वीरवती दुःखी हई । रातके समय उससे अंतिमबार मिलने के लिये श्मशान में पहुंची, ऊंचे स्थान शूलीपर चढ़े हुए चोरका आलिंगन करने के लिये उसने अधजली लकड़ियाँ और शव इक किये और उसपर चढ़कर उससे मिलने लगी इतने में लकड़ियां खिसक गयी और वह अकस्मात् नीचे गिर पड़ी उससे उसका ओठ चोरके मुहमें रह गया-दांतोंसे कट गया । वह दुष्टा दौड़ कर छुपके से घर लौटी । वहां शोर मचाया कि पतिने मेरा ओठ काट डाला है। राजाके पास शिकायत गयी उसने पतिको दण्डित करना चाहा किन्त इतने में किसीसे रहस्यका पता चला । तब राजाने निरपराध दत्त पतिको छोड़ दिया और दुराचारिणो वीरवतीका मुख काला कर शिरके केषोंका मुउन करवाके गधेपर बैठाकर उसको अपने देश के बाहर निकाल दिया।
कथा समाप्त । जो पुरुष नारियों पर विश्वास करता है वह समझ लेना चाहिये कि व्याघ्र पर, विषपर, गहरे जलाशय पर, शत्रुपर, चोर पर, अग्नि और हाथी पर विश्वास करता है।
भाव यह है कि व्यान आदिमें विश्वास करना जैसे घातक है वैसे स्त्रीके ऊपर विश्वास करना घातक है । क्योंकि कदाचित् व्याघ्र आदि उस महादोषको नहीं करते