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________________ - - -- अनुशिष्टि महाधिकार [ २८३ गोपनत्या क्रुधा छित्वा ग्रामकूट सुताशिरः । राजा सिंह बलः कुक्षौ शक्त्येष्यापरया हतः ।।६८६॥ रक्ता रानीकी कथा परपुरुष आसक्त रक्ता नामकी रानी थो उसका संक्षिप्त दुश्चरित्र इसतरह है कि अयोध्या नगरीका देवरति नामका राजा था उसकी रक्ता रानो उसे प्राणोंसे भी अधिक प्यारी थी। उसके अत्यधिक प्रेमके कारण राज्यका त्यागकर राजा सदा अंतःपूरमें रहने लगा अतः मंत्रियोंने उसे राज्यसे च्युत कर दिया । राजा रानोको लेकर अन्यत्र चला गया। वहाँ किसी पंगुके मधुर गानको सुनकर रक्ता उसपर आसक्त हो गयो और अपने पति देवरति राजाको किसी बहाने नदीमें डालकर खुद उस पंगु पुरुषके साथ रहने लगी । पंगुको एक टोकरीमें रखकर अपने मस्तक पर लेकर जगहजगह भ्रमण करती रही, पंगु मधुर गान सुनाता, जिससे दोनोंकी आजीविका होती थी। इधर राजा नदीके प्रवाहसे किसीतरह निकल आया और पुण्योदयसे मंगलपुरीका शासक-राजा बन गया । घूमती हुई रक्ता वहां पहुंचो ! राजाने पहिचान लिया और इस स्त्री चरित्रसे विरक्त होकर उसने दीक्षा ग्रहण को । इसप्रकार पर पुरुष पर आसक्त हुई नारोको दुष्ट चेष्टायें हुआ करती हैं। कथा समाप्त । गोपवतीने क्रोधसे नामकटकी पुत्रीका मस्तक काट दिया था और अपने पति सिंहबलके पेट में ईष्यावश भालाको धोंपकर उसे मार डाला था ।।९८६।। गोपवतीको कथा राजा सिंहबलकी रानी गोपवती थी यह अत्यन्त दुष्ट स्वभाव वाली थी। एक दिन राजाने ग्रामकूट नामके नगरके शासकको सुभद्रा नामकी पुत्रीसे विवाह कर लिया । इससे गोपवती क्रोधित हुई, उसने उस सुभद्राको मार डाला और उसका कटा हआ मस्तक राजाको दिखाया, राजाको इससे महान् दुःख हुआ, जैसे ही वह उसको दण्डित करने में उद्यत हुआ वैसे उस दुष्टाने उसको भी भाले द्वारा मार डाला। दुष्ट स्त्रीके लिये क्या कोई कुकृत्य शेष रहता है जिसे कि वह न कर सके ? वह तो सब कुछ कुकृत्य कर डालती है । कथा समाप्त ।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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