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________________ २७४ ] मरणकण्डिका शोतमुष्णं क्षुषां तृष्णां दुराहारं पथि श्रमम् । दुःशप सहते कामी बहते भारमुल्बरणम् ।।६४८।। छंद-सग्विणीक्षुप्यते कृष्यते लूयते पूयते प्राप्यते पाद्यते सीव्यते चिच्यते । छिद्यते भियते कोयते दीर्यते खन्यते रज्यत्ते सज्यते कामिना ।।६४६॥ छंद-दोधकगोमहिषोयरासभरक्षी काष्ठतृणोषकगोमयवाहो । प्रेषणकंडणमार्जनकारी कामनरेन्द्रवशोस्ति मनुष्यः ।।६५०॥ आयुधयिविधः कोर्णा रणक्षोणी विगाहते । लेखनं कुरुते दीनः पुस्तकानामनारतम् ॥६५॥ बारह वर्ष व्यतीत होगये किसी दिन वेश्याके परके अंगूठेपर दृष्टि गयी तो देखा कि इसके अंगुष्ठमें कुष्ठ है उससे पुनः वैराग्य भाव जाग्रत होनेसे उस द्वोपायन या गोर संदीवने पुनः दीक्षा ग्रहण की। इसप्रकार गोरसंदीव मुनि स्त्री के रूप देखने में आसक्त होनेसे अपने चारित्रसे भ्रष्ट हो गये थे । कथा समाप्त । कामांध व्यक्ति शीत उष्ण की बाधा को, भूख प्यास को, खोटे भोजनको, सहन करता है, मार्गके श्रमको, खोटी शय्याको सहता है तथा बड़े भारी बोझको ढोता है ॥९४८।। कामी क्षोभित होता है, खेती करता है, फसलको काटता है, खलियान साफ करता है, धान्य आदिको प्राप्त करता है, कपड़े सीने लगता है, चित्रकारी करता है. छेदन भेदन करता है, खरीदता है, काष्ठका विदारण करता है, छीलता है, वस्त्रादिको रंगाता है, बुनता है ।।६४६॥ कामरूपो राजाके आधीन हुआ मनुष्य, गाय, भैंस, घोड़े और गधोंकी रक्षा करने लगता है, काष्ठ, घास, जल, गोबर को ढोता है, स्वामी द्वारा जहां भेजा जाय वहां जानेरूप प्रेषण कार्यको करता है । मसलसे कटना और माडसे गह आदि साफ करना आदि नोच कामको करता है ।।९५०।। कामात विविध आयुधोंसे युक्त रणभूमि में प्रवेश करता है-युद्ध करता है, दोन होकर सतत् पुस्तकोंका लेखन करता है अर्थात स्त्री की अभिलाषासे उसकी प्राप्ति के लिये कोई उसे पुस्तकोंके लेखन में लगावे तो उसको करने लगता है 1१९५१।।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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