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अनुशिष्टि महाधिकार
[ २७५ संयुक्तां कषंति क्षोणी मभिणोमिव योषितम् । अधोत्य बहुराः शास्त्रं कुरुत शिशुपाठनम् ॥६५२।। शिल्पानि बहुभवानि तनुते परतुष्टये । विधत्ते वंचनां चित्रां वाणिज्यकरणोधतः ॥६५३।। प्रवमन्य भवाम्भोधौ पतनं बलवीचिके । किं कि करोति नो कर्म मयों मदनलंधितः ॥५४॥ दुर्मोर्चः कामिनीपाशः कामी वेष्टयत कुषीः । लालापारिवात्मानं कोशकारकृमिः स्वयम् ॥९५५।। रागो द्वषो मदोऽसूया पेशून्यं कलहो रतिः । बचना पराभूतिदोषाः सन्ति स्मरातुरे ॥६५६।। सिलनाल्यामिव क्षिप्रं, तप्तलोह प्रवेशने । तिलानां देहिनां पीडा, योन्या लिंग प्रवेशने ॥९५७॥
-- -- .. -- -- - गभिणी स्त्रीके समान संयुक्त पृथिवीका कर्षण करता है अर्थात् जमीनमें हल चलाता है, बहुतसे शास्त्रोंको पढ़ कर बालकों को पढ़ाने लगता है ।।६५२।।
परको संतुष्ट करने के लिये कि यह मुझे यांछित स्त्रीको देगा, बहुत भेदवाले शिल्पोंको करता है । व्यापार पेशामें उद्यत हुआ विविध प्रकारकी ठगायी करता है ।।९५३।। बहुत दुःख रूपी लहरें जिसमें उठ रही है ऐसे भव समुद्र में गिरना पड़ेगा इस बातका विचार किये बिना मदनातुर मानव क्या क्या कार्य नहीं करता ? सब कुछ कर हालता है ।।९५४।। खोटी बुद्धिवाला कामी जिसका छुड़ाना कठिन है ऐसे कामपाशोंसे स्वयं अपनेको वेष्टित करता है, जैसे रेशमका कोड़ा अपने हो मुख की लाररूपी पाशसे स्वयं को वेष्टित करता है ।।६५५।। कामो पुरुष में राग, द्वेष, मद, असूया, पशून्य, कलह, रति, ईर्षाके वचन, परका तिरस्कार इतने दोष होते हैं ।१९५६॥ कामातुर पुरुष जब काम सेवन करता है उस समय कितना जीवघात होता है यह बताते हैं जैसे तिलोंसे भरे नाली में तपाया हुमा लोहा डाला जाय तो तिल पीड़ित होते हैं अर्थात् चद-चट करते हुए जल भुन जाते हैं वैसेही स्त्रीको योनि में लिंग प्रविष्ट होनेपर वहांके सम्मुर्छन जीव नष्ट हो जाते हैं ।।६५७।। कामातुर पुरुष चाहती हुई स्त्रो हो अथवा बिना चाहती