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________________ अनुशिष्टि महाधिकार [ २६५ आपाते मधुरं रम्यमब्रह्म वशधाप्यवः । बिपाके कटुकं ज्ञेयं किपाकमिव सर्वदा ॥११॥ दोषाः कामस्य नारीणामाशौचं वलसंपतिः।। संगदोषाश्च कुर्वति स्त्रीवैराग्यं तपस्विनः ।।१२।। दृश्यते भवने दोषा यावन्तो दुःखदायिनः । पुरुषस्य क्रियन्ते ते सर्वे मधुनसंजया ॥१३॥ छंद-मोटकध्यायति शोचति सीवति रोदिति, वल्गति भ्राम्यति नृत्यति गायति । क्लाम्यति माद्यति रुष्यति तुष्पति, जल्पति कामवशो विमना बहु ।।११४। __ - - - - अनुराग होना, स्त्रीके सुन्दर अंगोंका निरीक्षण, स्त्री का सत्कार करना, स्त्रोका वस्त्रादिसे संस्कार करने में आदरभाष होना, प्रतीत में भोगे हुएका स्मरण, आगामीकालमें भोगनेकी अभिलाषा और अपनेको इष्ट लगनेवाले विषयोंका सेवन करना ये दस अब्रह्म हैं ॥९१०।। ये दस ही प्रकारका अब्रह्म तत्काल तो मधुर और रम्य मालूम होता है किन्तु उदयकालमें सर्वदा कटक फलदायी होता है, जैसे किपाक फल तत्काल मधुर लगता है किन्तु विपाकमें अत्यंत कटक-प्राणोंका घातक होता है ।।६११॥ कामके दोष, स्त्रियोंके दोष, शरीरके दोष, वृद्ध संगति और संग-संगतिके दोष इसप्रकार ये पांच बातें मुनिको स्त्रियोंसे वैराग्य भावको कराने वाली हैं ।।९१२।। आगे सर्वप्रथम कामके दोषोंका विस्तार पूर्वक वर्णन करते हैं इस संसारमें जितने दुःखदायी दोष दिखायो देते हैं वे सब पुरुषके मैथुन संज्ञासे किये जाते हैं ॥६१३।। कामके वश में हुआ विक्षिप्त पुरुष अपनी इष्ट स्त्री का ध्यान करता है, वह न मिले तो शोच करता है, पोड़ित होता है, रोता है, बकता है, भ्रमित होता है, नाचता है, गाता है, खिन्न होता है, मत्त होता है, कुपित होता है, कभो मिलनेको आशा हो जाय तो संतुष्ट होता है, व्यर्थ ही बोलने लगता है तथा उसको कभी पसीना आता है,
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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