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अनुशिष्टि महाधिकार
[ २५१ मुनिनानिच्छता लोके दुःखानि धृतये सदा । उपयोगो विधातव्यो जोवत्राणवते परः ॥८४६।।
छंद-शालिनीअप्येकाहव्यापकेन प्रकृष्टःप्राप्तः पाणः प्रातिहार्य सुरेभ्यः। एकेनव प्राणिरक्षाव्रतेन क्षिप्तः करोऽनेकनकौघमध्ये ॥५०॥
जो इसलोकमें दुःखोंको नहीं चाहता है उस मुनिको धैर्य पूर्वक सदा ही अहिंसा प्रतमें उपयोग लगाना चाहिये ।।८४९।।
एक दिनके प्राणिरक्षा तसे चंडाल देवोंके द्वारा प्रातिहार्यको प्राप्त हुआ था और एक ही हिंगामे क्रूर राजपत्र अनेक नकोसे युक्त जलाशयमें फेंका गया था ।।५०॥ यमपाल चंडालकी कथा
पोदनपुरमें राजा महाबल रहता था एक बार उसने नंदीश्वर पर्व में आठ दिन के लिये जोव घात एवं मांस निषेध समस्त नगरमें घोषित किया। एक दिन राजाके पुत्रने ही मेंढ़ेको मारकर खा लिया क्योंकि वह मांसलोलपो था। उसके कृत्यका जब राजाको पता चला तब उसने उन्हें कठोर प्राण दण्डको सजा दो। न्यायप्रिय राजाका न्याय सचमुच में सबके लिये समान होता है । कुमारको वध स्थान पर ले जानेको कहा और चंडालको मारनेके लिये बुलाया गया, वह दिन चतुर्दशी तिथिका था, यमपालने एक मुनिसे चतुर्दशीके दिन हिंसा नहीं करनेका नियम लिया था । उसने अपने नियमपर अडिग रहते हुए फांसो देने को मना करते हुए कहा कि मेरा आज अहिंसावत है मैं यह काम नहीं कर सकता । राजाको क्रोध आया । राजाने कहा कि इन दोनोंको ले जाकर शिशुमार तालाबमें पोटली बांधकर फेंक दो ।
राजाज्ञाके अनुसार कर्मचारियोंने दोनोंकी पृथक् पृथक् पोटली बांधकर तालाब में डाल दी । यमपालके अहिंसावतके प्रभावसे उसको देवोंने जलसे निकालकर सिंहासन पर बिठाया और उसके अहिंसा व्रतमें दृढ़ रहने की भूरि-भूरि प्रशंसा की। जो पापो मांसलोलुपी राजकुमार था, उसको तो सब मगरमच्छ खा गये । इस प्रकार एक दिनके अहिंसावतसे चंडाल बड़ी भारी विभूति और आदरको प्राप्त हुआ तो जो विधिपूर्वक पूर्ण