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अनुशिष्टि महाधिकार दृढसूर्योऽथ शूलस्थो मातो वेषो महद्धिकः । नमस्कारश्रुताभ्यासं कुर्वाणो भक्तितो मृतः ॥८०५॥
की जन्मपत्रिका देखकर राजासे कहा कि इस कन्याका जिसके साथ विवाह होगा वह संसारका सम्राट होगा। यह बात सुनकर राजाने अन्य क्षुद्र राजाओंकी दृष्टि से बचाने के लिये कन्याको बड़े यत्नसे रखना शुरु कर दिया।
एक समय धर्म नगरमें सुधर्माचार्य ५०० मुनिराजोंके साथ आये और नगर के बाहर उद्यानमें ठहर गये । अपनो विद्वत्ताके गर्वसे गर्वित राजा यम समस्त परिजन और पुरजनों के साथ मुनियोंकी निन्दा करता हुआ संघके दर्शनार्थ जा रहा था, किन्तु गुरु निन्दा और ज्ञान मदके कारण मार्ग में ही उसका सम्पूर्ण ज्ञान लोप हो गया और वह महामूर्ख बन गया । इस अनहोनी घटनासे राजा अत्यन्त दुःखो हुआ और उसने पुत्र गर्दभको राज्य भार देकर अपने अन्य ५०० पुत्रोंके साथ दीक्षा लेलो । दीक्षा लेने के बाद भी वे मूर्ख हो रहे अर्थात् पंचनमस्कारका उच्चारण भी वे नहीं कर सकते थे । इस दुःखसे दुखित होकर यम मुनिराज गुरुसे आशा कर तीर्थ यात्राको चल दिये । मार्गमें उन्होंने गर्दभ युक्त रथ, गेंद खेलते हुये बालक और मेंढ़क एवं सर्पके निमित्तसे होने वाली घटनाओंसे प्रेरित होकर तीन खण्डश्लोकों की रचना को।
यम मुनिराज, साधु सम्बन्धी प्रतिक्रमण, स्वाध्याय एवं कृति कर्म आदि सभी क्रियाएँ इन तीन खण्ड श्लोकों द्वारा ही किया करते थे, इसीके बलसे उन्हें सात ऋद्धियाँ प्राप्त हो गई थीं।
यममुनिकी कथा समाप्त । दृढ़ सूर्य चोर चोरीके अपराधके कारण शूलीपर चढ़ा हुआ था, वहांपर स्थित होकर ही वह भक्तिसे नमस्कार मंत्ररूपी श्रुत के अभ्यासको करता हुआ मरा और स्वर्ग में महद्धिक देव हुआ । ८०५।।
हढ़ सूर्य चोरकी कथा हल सूर्य नामका चोर था । वह एक दिन अपनी प्रेमिका वेश्याके कहनेसे राज्यमें चोरी करने गया। वह सीधा राजमहल पहुँचा । भाग्यसे हार उसके हाथ पड़ गया । वह उसे लिये हुए राजमहल से निकला । उसे निकलते ही पहरेदारों ने पकड़