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मरणकण्डिका ज्ञानं प्रकाशकं वृत्तं गोपर्क साधकं तपः । त्रयाणां कषिता योगे निर्वतिजिनशासने ॥८०१।। करणेन विना ज्ञानं संयमेन बिना तपः । सम्यक्त्वेन विना लिग क्रियमाणमनर्थकम् ॥८.२॥ ज्ञानोद्योतं विना योऽत्र मोक्षमार्गे प्रयास्यति । प्रयास्यति बने दुर्गे सोधोऽन्धतमसे सति ।।८०३॥ संयम श्लोकखंडेन निवार्य मरणं यमः ।
यदि नीतस्तवा कि न जिनसूत्रेण साध्यते ।।०४॥ - - .. - .. -...-. . . - -..
-..-..- ..जिनशासनमें ज्ञानको प्रकाशक माना है और चारित्रको गोपक (रक्षक) तथा तपको साधक माना है इन तीनोंका योग (एकता) होनेपर मोक्ष होता है ।।८०१॥
विशेषार्थ-जो वस्तुको देखने के लिये सहायक हो. वह-प्रकाशक कहलाता है, ज्ञान हेय उपादेय आदि तत्वोंको साक्षात दिखाता है अतः प्रकाशक है । जो आपत्ति कष्ट हिंसा मादिसे आत्माको रक्षा करता है वह गोपक कहलाता है चारित्र भी पाप अशुभ शुभ भाव आनिसे रक्षा करता है अतः गोपक है, जो कार्य का साधन करे उसे साधक कहते हैं, तप मोक्षमार्गकी सिद्धि करता है, कर्माका नाश करता है अतः साधक है ।
करण-आचरणके बिना ज्ञान, संयमके बिना तप और सम्यक्त्वके बिना दीक्षा ग्रहण करना व्यर्थ होता है ।।८०२॥ जो पुरुष ज्ञानरूपी प्रकाशके बिना मोक्षमार्गमें गमन करेगा वह उसके समान है जो कि अंध है और रात्रिके अंधकारमें गहन वनमें गमन करता है ।।८०३।।
यदि यम नामके मुनि आधे श्लोकका स्मरण उच्चारण स्वाध्याय करते हुए मरणरूप आपत्तिको रोककर उत्तम संयमको भी प्राप्त हुआ था तो जिनसूत्र द्वारा क्या नहीं सिद्ध हो सकता है ? सब सिद्ध हो सकता है ।।८०४।।
__ यम मुनिकी कथा उड देशान्तर्गत धर्म नगर में राजा यम राज्य करते थे । उनको रानीका नाम धनवती, पुत्रका नाम गर्दभ और पुत्रीका नाम कोणिका था। किसी ज्योतिषीने कोणिका