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मरणकण्डिका
विद्विषो नायकनेव चतुरंग बलीयसा । संसारस्य विघाताय नमस्कारेण योज्यते ॥७८८।। नमस्कारेण गृह्णाति देवोमाराधनां यतिः । पताकामिव हस्तेन मल्लो निश्चितमानसः ॥७८६।। अज्ञानोऽपिमृतो गोपो नमस्कारपरायणः । चम्पात्रेष्ठिकुले भूत्वा प्रपेदे संयमं परम् ॥७६०।।
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बलवान् सेना नायक या राजा द्वारा जिसप्रकार शत्रुका चतुरंग सेन्य नष्ट किया जाता है उसप्रकार संसारका नाश करने के लिये नमस्कार मंत्र प्रयुक्त किया जाता है, नमस्कार द्वारा संसारका घात किया जाता है ।।७८८।।
यति नमस्कार द्वारा आराधना रूपी देवीको ग्रहण करता है जैसे निश्चित मनवाला मल्ल हाथ द्वारा पताका को ग्रहण करता है ।।७८६।।
एक ग्वाला अज्ञानी था किन्तु नमस्कारमें तत्पर-णमोकार मंत्रके उच्चारण करने में तत्पर होता हुआ मरा पौर चंपानगरीके श्रेष्ठी कुल में उत्पन्न होकर परम संयमको प्राप्त हुआ था ।।७९०।।
सुभग ग्वालेको कथा __ अङ्गदेशान्तर्गत चम्पापुरी नगरीका राजा धात्रीवाहन था । उसको रानीका नाम अभयमती था। उसो नगरीमें वृषभदास नामका एक सेठ रहता था, जिसकी स्त्री का नाम जिनमती था । इस सेठके यहाँ सुभग नामका ग्वाला था. जो सेटकी गाय वराया करता था 1 शीतकाल में एक दिन जब वह गायें चराकर घर लौट रहा था तब उसने एक मुनिराजको ध्यानारूढ़ देखा । "इस भोषण शीतमें ये कैसे बचेंगे" इस विकल्प से वह अधीर हो उठा । वह रात्रि भर आग जलाकर मुनिराजको शीत वेदना दूर करता रहा । प्रात: मुनिराज ने अपना मौन विसर्जित किया और धर्मोपदेशके साथ साथ उस ग्वाल बालकको "णमो अरिहंताणं" यह मंत्र भी दिया । वे स्वयं भी यह पद बोलते हा आकाशमार्ग से चले गये । मन्त्र उच्चारणके साथ ही मुनिराजका आकाश में गमन देखकर ग्वालेको इस मंत्र पर अटल श्रद्धा हो गयी और वह निरन्तर भोजनादि सम्पूर्ण क्रियाओं के पूर्व महामन्त्रका उच्चारण करने लगा। एक दिन उसको गायें गंगापार