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अनुशिष्टि महाधिकार
छंद-समानिकारोगमारिचौरवरि भूपभूत पूर्वकाणि । भक्तिराशु दुःखदा निहन्ति सेविताऽखिलानि ॥७८४॥
इति भक्तिः । आराधनापुरोयानं मा स्मैकाग्रमना मुख । शुद्धलेख्यो नमस्कारं संसारक्षयकारकम् ॥७८५॥ एकोप्यहनमस्कारो मृत्युकाले निषेविता । विध्वंसति संसारं भास्थानिय तमश्चयम् ॥७८६॥ संसारं न विना शक्तं नमस्कारेण सूदितु। चतुरंगगुणोपेतं नायकेनेव विद्विषम् ॥७॥७॥
मंत्रियों के द्वारा समझाए जाने पर भी नहीं रुक सका तथा "ॐ नमः यासपज्याय" कहता हुवा बढ़ता ही गया । समवसरण में पहुँचकर राजा ने जन्मजन्मान्तरों के मिथ्याभावोंको नाश करने वाले भगवान वासुपूज्यके दर्शन किये, दीक्षा ली और चार ज्ञानोंसे युक्त होते हुवे गणधर हो गये।
__ कथा समाप्त । रोग, मारी, चौर, वैरी, राजा और भूत इनके द्वारा होनेवाले समस्त दुःखों को सेवित की गयी जिनेन्द्र भक्ति शीघ्र ही नष्ट कर देती है ॥७८४॥
इसप्रकार भक्तिका वर्णन किया । एकान मनवाले और शुद्ध है लेश्या जिसकी ऐसे हे क्षपक ! संसारका क्षय करने वाला और आराधनाका पुरोयान-मुख्य वाहन सदृश इस णमोकारको तुम मत छोड़ना ॥७८५॥
मृत्युकाल में एक अर्हन्तका नमस्कार भी सेवन किया जाय तो वह संसारका नाश कर देता है, जैसे सूर्य अंधकार समूहका नाश करता है ।।७८६।।
पंच नमस्कारके विना संसारका विच्छेद करना शक्य नहीं है, जैसे हाथी, घोड़ा, रथ और पदाति रूप चतुरंग सेना वाले शत्रु राजाका नाश सेनानायकके विना शक्य नहीं है ॥७८७।।