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मरण कण्डिका
पिन सम्यक्त्व पीयूषं, मिथ्यात्वविष मुत्सृज । निधेहि भक्तितश्चित्ते, नमस्कारमनारतम् ।।७५६।। मिथ्यात्व मोहिताः सत्यमसत्यं जानते जनाः । कुरंगा इस नणात्ताः, सलिलं मृगतृष्णिकाम् ॥७५७॥ मिथ्यात्व मोहतो जन्तो, वरं कनकमोहनम् । वत्तेमृत्युसहस्राणि, प्रथमं न परं पुनः ।।७५८।। अनादिकालमिथ्यात्व भावितो न प्रवर्तते । सम्यक्त्वेऽयं यतस्तेन, प्रयत्नोऽत्र विधीयते ।।७५६।।
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..- . - भावार्थ-गुणवाली बुद्धि आठ प्रकारको है सुश्रुषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, विज्ञान, ऊहा, अपोह और तत्त्वाभिनिवेश । सुश्रुषा-धर्मको सुननेको, सात तत्त्वोंको सुननेको इच्छा होना । श्रवण-धर्मगुरुके निकट जाकर धर्मको सुनना । उपदिष्ट तत्व को हृदयमें धारण करना । विज्ञान-जाने हुए तत्वको विशेष जानना । ऊहा-तत्त्व की परीक्षा । अपोह-अतस्वसे अथवा हेय तत्वसे हटना | तत्त्वाभिनिवेश-तत्त्वों पर विश्वास । इसप्रकारकी बुद्धि को मिथ्यात्व नष्ट कर देता है ।
आचार्य उपदेश दे रहे हैं कि हे यते ! मिथ्यात्वरूपी विषको छोड़कर सम्यक्त्व रूपी अमृतका पान करो । तुम अपने मन में सदा हो नमस्कार मंत्रको धारण करो ।।७५६।।
___ जो जीव मिथ्यात्वसे मोहित होते हैं वे असत्य को ही सत्य समझ बैठते हैं, जैसे प्याससे पीड़ित हिरण मरीचिका को ही जल मान बैठते हैं ।।७५७।।
इस जीव के लिये मिथ्यात्व कारणसे होने वाले मोह परिणामसे तो धतूरेसे होने वाला मोह परिणाम अच्छा है, क्योंकि धतूरा पीने से होनेवाला मोहभाव तो केवल एकबार मृत्यु देता है किन्तु पहला मिथ्यात्व मोह तो हजारों बार मृत्युको देता है ।।७५८॥
जिसकारणसे अनादिकाल से चले आये मिथ्यात्वसे भावित हआ यह जीव सम्यक्त्व में प्रवत्ति नहीं करता, सम्यक्त्व में रत नहीं होता उस कारण से हे क्षपक ! इस सम्यक्त्व में प्रयत्न किया जाता है, सम्यक्त्वको प्राप्तिके लिये प्रयत्न करते हैं ।।७५९।।