SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्यापकादि प्रधिकार [२०७ मलं क्षपन्ति चत्वारो वर्चः प्रस्रवणाविकम । शय्यासंस्तरको कालद्वये प्रतिलिखन्ति च ॥६६३।। क्षपकासमथदारं, नत्वारः पाति यत्नतः । धर्मश्रुतिगृहबार, चत्वारः पालयन्ति ते ॥६६४।। निशिमाग्रति चत्वारो, जितनिद्रामहोद्यमाः । वार्ता मार्गन्ति चत्वारो, यत्नाद् देशादि गोचरां ॥६६॥ बहिर्वन्ति चत्वारः, स्वपरागमकोविदाः । अनन्तः शब्दपातं ते जनानां निखिलाः कथाः ॥६६६।। क्षपकके समाधानको चाहने वाले, अप्रमत्त श्रमरहित ऐसे चार मुनि क्षपकके लिये योग्य और इष्ट ऐसे पानक द्रव्यको लाते हैं--पानक द्रव्यकी व्यवस्था करते हैं ।।६९२।। ___ चार मुनि क्षपकके मल मूत्र कफ आदिका क्षेपण करते हैं, दोनों संध्याओं में वसति और संस्तरका शोधन भी करते हैं ।।६९३।। चार मुनि क्षपकके बसतिके द्वारको रक्षा करते हैं अर्थात् मिथ्याष्टि, क्षपक को अशांति करने वाले व्यक्ति क्षपकके निकट नहीं आपायें इत्यादि कार्यके हेतु चार मनि वसतिके दरवाजे पर नियुक्त होते हैं । अन्य चार मुनिधर्म श्रवण मंडपके द्वारकी रक्षा करते हैं ।।६६४॥ जिन्होंने निद्राको जीत लिया है महान् उद्यमशील हैं वे मुनि रात्रिमें क्षपक के निकट जागरण करते हैं अर्थात् राथिमें शयन नहीं करते । चार चतुर मुनि अपने निवासभूत इस देशमें क्या स्थिति चल रही है ? इस नगरमें शुभ अशुभ कौनसी वार्ता है ? इत्यादि बातोंका निरीक्षण करते रहते हैं ।।६९५।। स्वपर आगम ज्ञान में कुशल ऐसे चार मुनि क्षपकके दर्शनार्थ आगत लोगोंको धर्म कथायें सूनाते हैं अर्थात् आक्षेपणी आदि कथायें धर्मोपदेश, सिद्धांतोंका कथन इत्यादि रूप उपदेश श्रावक आदिको देते हैं, कहाँपर देते हैं ? वसतिके बाहर देते है क्षपकके निकट शब्द नहीं पहुंच सके इतने दूर रहकर अन्य जनोंको उपदेश देते हैं ।।६९६।।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy