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निर्याणकादि अधिकार
कथ्या बहुश्रुतस्यापि नासन्ने मरणे सति । अनाचारं न कुर्वन्ति महतो हि कदाचन ॥६॥ विक्षेपिणीं विख्यातः, समाधान विधायिनः । कथयन्ति कथास्तिस्रो, निस्त्रिदंडत्रिगौरवाः ||६८६ ॥ नियुक्तस्य,
तपोभाव
ते वदंति तथा तस्य
प्रत्यासन्न मृतेर्यतेः । भवत्याराधको यथा ।। ६६०।
योग्यमाहारमश्रमाः ।
लस्या नयन्ति चत्वारो निर्माना लब्धिसंपन्ना, स्तदिष्टं गतदूषणं ।। ६६१ ||
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उसको सुनते समय मरण हो जाय तो अल्प ज्ञानी क्षपक परमतको सत्य मानकर उसमें श्रद्धान करते हुए मरण करनेसे सम्यग्दर्शनादिसे च्युत होगा । इसलिये क्षपकको विक्षेपणी कथा नहीं सुनाते हैं ||६८७ ||
दिपक बहुत है बहुत से परमत स्वमत के शास्त्रोंका ज्ञाता है तो भी उसे मरणके निकट होनेपर विक्षेपणी कथा नहीं सुनानी चाहिये, क्योंकि महापुरुष कदाचित् भी अनाचार नहीं करते हैं । आशय यह है कि आगमज्ञानी क्षपकके लिये भो विक्षेपण कथा समाधिमें सहायक नहीं होती, विक्षेप ही कराती है अतः बहुश्रुत क्षपकको भी यह कथा त्याज्य है ।। ६८८ ।।
अतः विक्षेपणो कथाको छोड़कर समाधान करनेवाले परिचारक मन, बचन, काय अशुभ परिणति तथा तीन गारवोंको नष्ट करनेवाली आक्षेपणी आदि तीन कथाओं को ही कहते हैं ।। ६८९ ।।
मृत्युके निकट होनेसे जो अतिशयरूप से श्रेष्ठ उप तप भावना में तत्पर है ऐसे उस क्षपकको उसप्रकार का धर्मोपदेश देते हैं जिसप्रकारसे कि वह आराधनाओंका उत्तम आराधक हो ।।६६०।। इसप्रकार चार मुनि क्षपकको धर्मकथा सुनाने में कैसे तत्पर होते हैं यह बताया ।
अब चार मुनि क्षपकके आहारचर्या में तत्पर रहते हैं यह बताते हैं
जो मुनि ऋद्धि संपन्न हैं, श्रम रहित हैं, मान रहित हैं, ऐसे चार मुनि क्षपक के लिये इष्ट, उद्दिष्ट आदि दोषसे रहित, योग्य ऐसे आहारको लाते हैं- आहारकी व्यवस्था कराते हैं ।।६९१।।