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मरगा कागिरका
कथा साऽक्षेपणी व ते या विद्याचरणादिकम् । विक्षेपणीकथावक्ति परात्मसमयो पुनः ॥६८५॥ संवेजनी कथा ते ज्ञानचारित्रभवा । निवेदनी कथा वक्ति भोगांगावे रसारताम् ।।६८६।। विक्षेपणीरतस्यास्य मीलितं गनि गछति ।
तदानीमसमाधानमल्पशास्त्रस्य जायते ॥६८७।। जिसमें सम्यग्दर्शन ज्ञान और चारित्रका वर्णन हो वह आक्षेप जनिकाआक्षेपणी कथा है और जिसमें जनमत तथा परमत का निरूपण हो वह विक्षेपणो कथा है अर्थात जिसमें परमतका खण्डन हो और जैनमतका भण्डन हो ऐसी न्याय रूप विक्षेपणी कथा है ।।६८५।।
___ सम्यक्त्वज्ञान और चारित्र द्वारा आत्मामें कैसा वैभव उत्पन्न होता है, तपश्चरण द्वारा ऋद्धि किस प्रकार प्रगट होती है इत्यादिका वर्णन करनेवाली संवेजनो कथा है । पंचेन्द्रियोंके भोग और शरीर किस प्रकार निःसार है इसका वर्णन निवेदनी कथामें होता है ।।६८६।।।
विशेषार्थ-धर्मकथाके चार भेद हैं आक्षेपणी, विक्षेपणो, संवेजनी और निर्वेदनो । रत्नत्रय धर्मका अर्थात् सम्यक्त्वका, मतिश्रुत आदि पांचों ज्ञानोंका, सामायिक आदि चारित्रोंका वर्णन करनेवाली आक्षेपणो कथा है | वस्तु सर्वथा नित्य ही है अथवा सर्वथा अनित्य है इत्यादि रूप मिथ्याइष्टिके मतका पहले पक्ष उपस्थित करके पुन: उसका निरसन कर जैनमतको स्थापित कर देना इत्यादि न्याय ग्रंथरूप विक्षेपणी कथा हुआ करतो है । रत्नत्रय धर्म का आराधन करनेसे कैसे वैभव प्राप्त होते हैं उसी भवमें ऋद्धियां, परभवमें देवेन्द्र, चक्रवर्तीत्व, बलदेव आदिका सुख प्राप्त होता है ऐसी धर्मके फल में हर्ष बढाने वाली संवेजनी कथा है । यह शरीर अशुचि सप्त धातुमय है शुद्ध भी भोजन आदिको तत्काल अशुद्ध करता है । यह भोग महाभयानक कष्ट उत्पन्न करते हैं, नरक आदि कुगतियोंमें भ्रमण कराते हैं इत्यादिरूप शरीर और भोगोंका वास्तविक स्वरूप बतलाने वाली निर्वेदनी कथा है । इन चार प्रकारको कथाओं में से विक्षेपणी कथाको छोड़कर शेष तीन कथायें क्षपकको सुनानी चाहिये ।
इस क्षपकके यदि विक्षेपणी कथा सुनते हुए जीवन समाप्त हो जाय तो उस वक्त क्षपकके लिये वह कथा अशांतिकारक होती है । क्योंकि इसमें परमतका वर्णन है