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________________ १३४ ] मरण कण्डिका प्रचभीरुको नित्यं दशस्वेतेषु यः स्थितः । क्षपकस्य समर्थोऽसौ वक्तुं चर्यामदूषणाम् ||४३६॥ राजपिंड त्याग-राजाके यहापर आहार ग्रहण नहीं करना राजपिंड त्याग कहलाता है, राजा यहां आहारार्थं मुनि प्रवेश करनेपर वहां कोई उन्मत्त दास-दासी उपहास कर सकते हैं, रत्नोंके बहुमूल्य पदार्थ वहां रहते हैं उनका कोई अन्य अपहरण करें और दोषारोपण मुनि पर आवे कि यही राजमहल में आया था इसीने रत्नहार चुराया इत्यादि वहां अत्यंत गरिष्ठ आहार ग्रहण करनेपर गृद्धता आयेगी -विकार आयेगा इत्यादि अनेक दोष राजपिंड ग्रहणसे हो सकते हैं अतः इसका त्याग बताया है यदि ये दोष नहीं आते हों तो राजपिंड ग्रहण कर सकता है । कृतिकर्म प्रवृत्त -- छह प्रावश्यक क्रियायें आवर्त, शिरोनति दण्डक, कायोत्सर्ग आदिसे युक्त होती हैं उन सबको यथाविधि करना कृतिकर्म प्रवृत्त है, अथवा चारित्र संपन्न मुनिका, गुरुका, अपने से बड़े मुनिका विनय करना कृतिकर्म प्रवृत्तत्व स्थितिकल्प है । व्रतारोपण अर्हत्व - पांच महाव्रत, समिति आदि व्रतोंको योग्य मुमुक्षु जीवोंको देना अर्थात् योग्य शिष्योंको व्रतोंसे संपन्न करना । अमुक शिष्य व्रत धारणके योग्य है, अमुक नहीं इत्यादि जाननेको बुद्धिका होना । दीक्षाके योग्य मुमुक्षुको दीक्षा देना आदि व्रतारोपण अर्हत्व है | जेष्ठत्व - आर्यिका ऐलक आदि सबमें जेष्ठता मृनिमें होती है, अथवा मुनि समुदाय में चारित्र आदिसे विशिष्टता होना आचार्यका जेष्ठत्व स्थितिकल्प है । प्रतिक्रम - देवसिक, रात्रिक, पाक्षिक आदि प्रतिक्रमणोंमें तत्परता प्रतिक्रम स्थितिकल्प है । मासैकवासिता चातुर्माससे अन्य दिनोंमें एक स्थानपर एक मास से अधिक नहीं रहना मासैक वासिता है । पर्या-पाद्य चातुर्मास में बिहार नहीं करना पर्या अथवा पाद्म नामका अंतिम दसवां स्थितिकल्प है । चातुर्मास में विहार करने से हरितकाय आदि जीवोंको विराधना होती है उससे असंयम होता है अत: साधुजन वर्षाकालमें विहार नहीं करते । इसप्रकार दश स्थितिकल्पों का वर्णन किया । इन दश स्थितिकल्पोंमें जो आचार्य स्थित है, नित्य हो पाप भीरु है, ऐसा आचार्य ही क्षपकको निर्दोष चर्याका प्रतिपादन करने में समर्थ होता है ||४३६||
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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