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________________ सल्लेखनादि अधिकार वास्तव्यागंतुकाः सम्यक् विविधः प्रतिलेखनैः । क्रियाचारित्रबोधाय, परीक्षन्ते परस्परम् ।।४२६॥ आवश्यके ग्रहे क्षेपे, स्वाध्याये प्रतिलेखने । परीक्षन्ते यचोमार्गे विहाराहारयोरपि ॥४२७।। [ १२६ वास्तव्य मुनि और आगंतुक मुनि एक दूसरे की क्रिया और चारित्र का बो होने के लिये विविध प्रतिलेखनों द्वारा अच्छी तरह से परस्पर में परीक्षा करते हैं ।।४२६।। विशेषार्थ - आगंतुक मुनि और वास्तव्य मुनि परस्पर का आचरण देखते हैं । वास्तव्य मुनि परीक्षा करते हैं कि यह आया हुआ साधु समितियों का पालन करता है या नहीं। छह आवश्यक क्रियायें यथा समय होती हैं या असमय में होती हैं । आचार्यों हुआ करता है उसका परिज्ञान करने हेतु अन्योन्य की परीक्षा जानने के लिये भो में करते हैं । आगत मुनि अपने साथ रहने योग्य है अथवा नहीं यह परीक्षा करते हैं । छह आवश्यक क्रिया वास्तव्य मुनियों में है या नहीं आगत मुनि में हैं या नहीं, वस्तुओं का रखना और उठाना देखभाल पूर्वक है या नहीं, स्वाध्याय में तत्परता कमंडलु आदि का शोधन, वार्तालाप, विहार और आहार इन सब विषयों में वे दोनों परस्पर का निरीक्षण करते हैं ||४२७|| विशेषार्थं - संवर और निर्जरा के लिये मुनिजन सामायिक वंदना, स्तव, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग इन छह आवश्यकों को करते हैं, अवश्य करने योग्य होने से आवश्यक नाम वाले हैं । आगत मुनि यह देखता है कि वास्तव्य मुनि सामायिकादि को शास्त्रोक्त विधि से करते हैं अथवा नहीं, एवं वास्तव्य मुनि आगत मुनि की उक्त क्रियाओं का निरीक्षण करते हैं कि यह केवल द्रव्य सामायिक आवर्त भक्तिपाठ आदि ही करता है या भाव सामायिक- रागद्वेष के त्याग रूप शुद्ध भाववाली सामायिक करता है । एक तीर्थंकर की स्तुति वंदना में और चतुर्विंशति तोर्थंकर स्तुति में भक्तिभाव है या नहीं, प्रतिक्रमण केवल पाठ का उच्चारण तो नहीं कर रहा, त्याज्य पदार्थ में कहीं आसक्ति तो नहीं कर रहा है । कायोत्सर्ग में शरीर की निश्चलता पूर्वक मन की निश्चलता है अथवा नहीं इत्यादि रूप से देखते हैं । नेत्रों से देखकर पुनः
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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