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गगानापिका दुर्जनस्यापराधेन, पोड्यन्ते सज्जना जने । अपराधपराचीनाः पृवाकोरिव डुभाः ॥३५६।।
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घूक-हंसकथा
पाटलीपुत्र नगरीके गोपुर द्वार पर ऊपरी भागमें एक चूक (उल्लू) रहता था । एक दिन वह पक्षी उड़कर हंस के पास चला गया, दोनों की मित्रता हो गयी । हंस उस घूक को बहुत बड़ा श्रेष्ठ पक्षो मानता था अतः किसो दिन उसके साथ उक्त गोपुर द्वार के स्थान में आकर बैठ गया। उस समय नगर के राजा प्रजापाल दिग् विजय करने के लिये चतुरंग सेना को लेकर उस गोपुर द्वार से निकल रहा था। उल्लू ने राजा के दक्षिण भाग में जाकर विरल शब्द किया जिससे राजा को क्रोध आया कि हम युद्ध के लिये प्रस्थान कर रहे हैं और यह दुष्ट पक्षो अपशकुन करता है उसने धनुष बाण लेकर निशाना बांधा किन्तु घूक बहुत चालाक था वह शीघ्र वहांसे उड़कर भाग गया बेचारे निर्दोष हंस को वह बाण लग गया और वह घायल होकर तत्काल मर गया।
इसप्रकार नीच की संगति करने से निरपराधी हंस का प्राण नाश हुआ, उसे अकारण ही असमयमें मरना पड़ा अतः दुष्ट को संगति कभी नहीं करना चाहिये ।
कथा समाप्त ।
दुर्जन के अपराध से सज्जन पुरुष लोक में पीड़ा को प्राप्त होते हैं, जैसे अपराध रहित डुडुभ-विष रहित बड़ा सर्प पृदाकु-छोटे विषैले सर्पके काटने रूप अपराध से पोड़ा को प्राप्त होता है । भावार्थ यह है कि अपराध तो करता है दुर्जन और उसके संगति में आया हुआ सज्जन पुरुष है उसे उस अपराध का दण्ड भोगना पड़ता है क्योंकि दुर्जन तो अपराध करके भाग जाता है, छिप जाता है, झूठ बोलकर अपना बचाव कर लेता है । और सज्जन को इसने ही अपराध किया है ऐसा समझकर लोग दण्डित कर देते हैं । जैसे एक होता छोटा किन्तु जहरीला सर्प, और एक होता है निर्विष सर्प । विषेला छोटा सर्प किसीको काटकर कहीं छिप जाता है और लोग बड़े निर्विष सर्प को इसने ही काटा है ऐसा समझकर उसे मारते हैं ।।३५६॥