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सल्लेखनादि अधिकार
ससंक्रममसंक्रमम् ।
सावष्टंभं तनूत्सगँ गुद्धोड्डीनमवस्थानं सम्पादक पादकम् ॥२२६॥ पर्यकम पर्यक वीर पद्मगवासनम् । श्रासनं हस्ति शुण्डं च गोदोहमकराननम् ||२३०|| समस्फिगं समस्फिक्कं कृत्यं कुक्कुटकासनम् । बहुधेत्यानं साधोः कायक्लेशविधायिनः ॥२३१॥
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शरीर में क्लेश-कष्ट होता है तथा इस तपके इच्छुक यति किसी ग्राम में जाकर खड़े खड़े ही वापिस लोट आते हैं अर्थात् एक गांव से दूसरे गांवमें जाना और तत्काल लौट आना बीचमें कहीं भी नहीं बैठना यह उक्त मुनिका कायक्लेश तप है || २२८ ||
सहारा लेकर कायोत्सर्ग - खड़े होना, एक स्थान से दूसरे स्थान में जाकर वहां घन्टा दिन आदि काल तक खड़े होकर ध्यान करना संसंक्रम कायक्लेश है, उसी एक स्थानमें निश्चल होना असंक्रम है, गिद्ध पक्षी के समान अवस्थित होना अर्थात् गिद्ध जैसे दोनों पंखों को फैलाकर उड़ता है वैसे दोनों बाहुओं को फैलाकर खड़े रहना, दोनों पैरों को समान रखकर खड़े होना, एक पैर से खड़े रहना ये सब कायक्लेश हैं ॥२२६॥ यहां तक खड़े होकर किये जाने वाले कायक्लेश का वर्णन किया ।
पर्यंक आसन लगाना, अर्द्ध पर्यकासन, पद्मासन, गवासन, वोरासन, हस्तिशूण्डासन, गोदुह आसन, मकरासन || २३०॥ तथा समस्फिग, असमस्फिक्क आसन लगाना, कुक्कुट आसन ऐसे अनेक प्रकारके आसन कायक्लेश तप तपने वाले साधुके हुआ करते हैं ।। २३१।। यहां तक दो कारिकाओं में बैठने के आसन बताये हैं ।
विशेषार्थ --- दोनों पांवों को गोद में लेकर प्रतिमावत् बैठना पर्यंकासन कहलाता है, एक पैर को गोद रखकर बैठना अर्द्ध पर्यं कासन है, इसोको क्रमशः पद्मासन और अर्द्ध - पद्मासन कहते हैं । गयासन गोवत् बैठना स्त्रियां जिस तरह बैठकर जिनेन्द्र को नमस्कार करती हैं वैसा आसन । वोरासन दोनों जंघाएँ दूर अन्तर पर स्थापित कर बैठना । हाथी जैसे अपनी सूण्ड को पसारता है वैसे एक हाथको अथवा एक पांवको फैलाकर बैठना हस्तिणू डासन कहलाता है । गोदुह आसन - गायको दोहते समय जैसे बैठते हैं वैसा बैठना | मकरानन आसन- मगर के मुखके समान पांवों की आकृति बनाकर बैठना । समस्फिग का अर्थ संस्कृत टीका में "स्फिपिंड सम करणेनासनं " शब्दका प्रयोग