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________________ ७२ ] मरकण्डिका तस्मादेकोत्तर श्र ेण्या कवलः शिष्यते परः । मुच्यते यत्र तदिदम मौदर्यमुच्यते ।।२१७।। निद्राजयः समाधानं स्वाध्यायः संयमः परः । हृषीक निर्जयः साधोरवमोवर्यतो गुणाः ॥ २१६ ॥ चतस्रो गृध्नुतासक्ति वर्षा संयमकारिणोः । नवनीत सुरामांस मध्याख्या विकृतिविदुः ॥ २१६॥ हो जाती है || २१६ । । भावार्थ - हजार चावलों का एक ग्रास माना है ऐसे बत्तीस ग्रास वाला आहार पुरुष के लिये क्षुधा शांतिकारक है अट्ठाईस ग्रास प्रमाण आहार स्त्रियों के लिये तृप्तिकारक है । उक्त प्रमाणभूत आहार में से एक-एक ग्रास कम करते हुए एक ग्रास प्रमाण शेष तक घटाते जाना अवमौदर्य तप है । अर्थात् बतीस ग्रासों में से एक ग्रास कम बाहार लेना दो ग्रास कम लेना ऐसे करते-करते एक ग्रास ही प्रहार लेना इसप्रकार अवमौदर्य अनेक प्रकार का है । अपने स्वाभाविक आहार में से एक ग्रास कम लिया अथवा कभी दो ग्रास, कभी दस ग्राम कम पन्द्रह ग्रास इत्यादि अनेक प्रकार से आहार को कम करना ये सब ही अवमोदर्यं तप कहलाता है क्योंकि इन सब विधियों में भूख से कम खाया जाता है और भूख से कम खाना ही अवमौदर्य तपका लक्षण है ।।२१७।। इस मौदर्य तपको करनेसे साधुको निद्राविजय गुण प्राप्त होता है, समाधान होता है अर्थात् जितना और जैसा आहार मिला उसीमें सन्तुष्टता आती है, स्वाध्याय भली प्रकार से हो जाता है उसमें प्रमाद नहीं आता । संयम का अच्छी तरह पालन होता है और इन्द्रियविजय गुण भी प्राप्त होता है ।।२१८ || रस त्याग तपको कहते हैं-रस त्याग के कथन में सर्व प्रथम उन पदार्थों को बताते हैं कि जो महान अनर्थकारी हैं सर्वथा सर्वजन यति और श्रावक सबके लिये त्याज्य हैं । चार महा त्रिकृतियां हैं -- मक्खन, मांस, मधु और मद्य । मक्खन कांक्षागृद्धता को कराता है, मद्य अगम्यगमन का निमित्त है । मांस इन्द्रिय दर्पकारी है और
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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