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भक्तप्रत्याम्यानमरण अर्ह आदि अधिकार धीरतासेनया धीरो विवेकशर जालया । जायते योधयन्नाशु साधुः पूर्ण मनोरथः ॥२०८।।
इति धति: । विधाय विधिना दृष्टिज्ञान चारित्रशोधनम् । चिरं विहरतां षष्टया यति भावनयाऽनया ॥२०६॥
इति भावनासूत्र।
साधु अपनी धृति भावना रूपी सेना द्वारा जो कि विनेक बाग समूह से पूर्ण है, उसके द्वारा युद्ध करके शीघ्र ही पूर्ण मनोरथ होता है अर्थात् परीषह आदि पर विजय प्राप्त कर लेता है। साधु इस धुति भावना द्वारा विधि पूर्वक दर्शन ज्ञान और चारित्न का शोधन करके चिरकाल तक विहार करें। कांदी आदि अशुभ पांच भावनाओं का त्याग करके छठी तपोभावना आदि रूप भावना द्वारा रत्नत्रय का शोधन करें ।।२०७॥२०८।। ॥२०॥
(१०) भावना अधिकार समाप्त ।
।। भक्तप्रत्याख्यानमरण अहं आदि अधिकार समाप्त हुआ ॥