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________________ मरणकाण्डेका - ६०० उस ध्यान के काल का प्रमाण मात्रा-पञ्चक-कालेन, तेन ध्यानेन वर्तते । प्रकृतीनामपक्वानां, द्वासप्ततिमसौ समम् ।।२१९९ ।। अर्थ - अ इ उ ऋ लु इन पाँच ह्रस्व मात्राओं के उच्चारण में जितना काल लगता है उतना ही काल इस चतुर्थ शुक्ल ध्यान का एवं उतना ही काल चौदहवें गुणस्थान का है। इतने अल्पकाल वाले ध्यान के द्वारा ही वे अयोगी जिन उस गुणस्थान के उपान्त्य अर्थात् द्वि-चरम समय में अपक्व रूप अर्थात् अनुदय रूप बहत्तर प्रकृतियों का बिना उदीरणा किये युगपत् क्षय कर देते हैं ।।२१९९ ।। बहत्तर प्रकृतियों के नाम शरीरं पञ्चथा तत्र, पञ्चधा देह-बन्धनम् । संघात: पञ्चधा षोढा, संस्थानममर-द्वयम् ॥२२०० ।। अङ्गोपाङ्ग-त्रिसंख्यानं, षोढा संहनन-क्षणे। पञ्च वर्णा रसाः पञ्च गन्ध-स्पर्शा द्विधाष्टधा ॥२२०१॥ क्षीयते गुरुलध्यादि-चतुष्कं द्वे नभो-गती। शुभ-द्वयं स्थिर-द्वन्द्वं, प्रत्येकं सुस्वर-नूयम् ।।२२०२॥ अनादेयायशो निर्माणे, चापूर्णानि दुर्भगम् । वेद्यमन्यतरत्तस्य, द्वासप्ततिरुपान्तिमे ॥२२०३।। अर्थ - औदारिक आदि पाँच शरीर, औदारिक बन्धन आदि पाँच बन्धन, औदारिक शरीर संघात आदि पाँच संघात, समचतुरस्र आदि छह संस्थान, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, औदारिक शरीर-अंगोपांग, वैक्रियक शरीर अंगोपांग, आहारक शरीर अंगोपांग ये तीन, वज्रवृषभनाराच आदि छह संहनन, शुक्ल-कृष्णादि पाँच वर्ण, मधुर आदि पाँच रस, सुगन्ध, दुर्गन्ध, स्निग्ध, रुक्ष आदि आठ स्पर्श, अगुरुलधु, उपघात, परघात और उच्छ्वास यह चतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, अप्रशस्त विहायोगति, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, प्रत्येक, सुस्वर, दुस्वर, अनादेय, अयशकीर्ति, निर्माण, अपर्याप्त, दुर्भग, साता-असाता में से कोई एक वेदनीय और नीच गोत्र, इन बहत्तर प्रकृतियों का उपान्त्य समय में क्षय करते हैं ।।२२०० से २२०३ तक|| चौदहवें गुणस्थान के अन्त समय में नष्ट होने वाली प्रकृतियाँ अन्तिमे समये इत्वा, प्रकृती: स त्रयोदश । वन्द्यमान: सदाऽयोगः, प्रयाति पदमव्ययम् ।।२२०४ ।। अर्थ - अन्तिम समय में तेरह प्रकृतियों को नष्ट करके सबके द्वारा बंदनीय ऐसे वे अयोगी जिन मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं।।२२०४।। प्रश्न - अन्तिम समय में नष्ट होने वाली तेरह प्रकृतियाँ कौन-कौनसी हैं ?
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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