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________________ मरणकण्डिका - ५२८ योग शब्द का अर्थ योगः कर्मास्रवं दुष्टो, मनो-वाक्काय-लक्षणः। यथा भुक्तो दुराहारो, विदधाति व्रणाम्रवम्॥१९२५।। अर्थ - जैसे अपथ्य/खोटा आहार घाव में पीप पैदा करता है, वैसे ही मन, वचन और काय की पाप प्रवृत्ति या अशुभ चेष्टारूप योग कर्मयोग्य पुद्गल स्कन्धों को कर्मरूप परिणमाते हैं अर्थात् पापासव कराते हैं ।।१९२५॥ शुभाशुभ कर्मासव के कारण कार दुरुले लोगो, विशुद्धः पुण्य-कर्मणाम् । विपरीतः परं सद्यः सेवितः पापकर्मणाम् ।।१९२६॥ अर्थ - विशुद्ध अर्थात् शुभ चेष्टारूप योग सातावेदनीय आदि शुभ कर्मासवों को करता है और इससे विपरीत अर्थात् मन, वचन एवं काय की अशुभ-चेष्टारूप से सेवित योग तत्क्षण पापकर्मों का आस्रव करता है।॥१९२६॥ प्रश्न - शुभाशुभ आस्रव कितने प्रकार से हो सकता है ? उत्तर - कृत, कारित और अनुमोदना अर्थात् स्वयं करना, दूसरों से कराना एवं करते हुए की अनुमोदना करना। मन, वचन तथा काय, इन तीन प्रकार की शुभाशुभ चेष्टा रूप योग, शुभाशुभ कर्मानव में कारण होता है। प्रश्न - मन, वचन, काय की शुभ चेष्टाएँ कौन-कौन सी हैं ? उत्तर - अनुकम्पा, दया, दान और पूजा आदि के भाव होना मन की शुभ चेष्टा है। हित, मित, प्रिय एवं धर्म सापेक्ष वाणी बोलना वचन की शुभ चेष्टा है और वैयावृत्त्य करना, परोपकार पूजाभिषेक और तीर्थयात्रा आदि करना शरीर की शुभ चेष्टाएँ हैं। इन शुभ चेष्टाओं से सातावेदनीय, देवगति, देवायु एवं उच्चगोत्रादि पुण्य कर्मों का आस्रव होता है। प्रश्न - अनुकम्पा किसे कहते हैं, वह कितने प्रकार की है और किस-किस पर की जाती है ? उत्तर - अनुग्रह से दयाई चित्त वाले के दूसरे की पीड़ा को अपनी ही मानने का जो भाव होता है उसे अनुकम्पा कहते हैं। अथवा वैर भाव के त्यागपूर्वक सब जीवों पर अनुग्रह, मैत्रीभाव, या माध्यस्थभाव और शल्य रहित वृत्ति अनुकम्पा है। धर्मानुकम्पा, मिश्रानुकम्पा एवं सर्वानुकम्पा के भेद से यह तीन प्रकार की होती है। धर्मानुकम्पा - जिन्होंने नौ कोटि से असंयम का त्याग किया है, मन एवं इन्द्रियों का दमन किया है, उग्र कषाय तथा उसके कारणों का त्याग किया है, दिव्य भोगों में भी दोषों को देखकर दृढ़ विरागता को अपनाया है और नि:संगता को अपनाया है, तथा जो मान-अपमान, सुख-दुख, लाभ-अलाभ, तृण-स्वर्ण,
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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