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________________ परणकण्डिका - ५१२ काल परिवर्तन ये कल्पानामनन्तानां, समयाः सन्ति भो यते !। जातो मृतः समस्तेषु, शरीरी तेष्वनेकशः ।।१८६७ ।। अर्थ - हे यते ! अनन्त कल्पकालों के जितने समय हैं उन सभी समयों में यह जीव अनन्तबार उत्पन्न हुआ और अनन्तबार मरा ॥१८६७ ।। प्रश्न - काल परिवर्तन किसे कहते हैं? उत्तर - उत्सर्पिणीकाल के प्रथम समय में उत्पन्न हुआ कोई जीव अपनी आयु पूर्ण कर मरा। वही जीव पुनः दूसरी उत्सर्पिणी के दूसरे समय में उत्पन्न हुआ और अपनी आयु पूर्ण कर मरा। वही जीव पुन: तीसरी उत्सर्पिणी के तीसरे समय में उत्पन्न हुआ और मरः । इसी क्रम स उत्सर्पिणी समाप्त की और इसी क्रम से अवसर्पिणी समाप्त की। अर्थात् उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी के बीस कोड़ाकोड़ी सागर के जितने समय हैं उनमें क्रमश: उत्पन्न हुआ तथा इसी क्रम से मरण को प्राप्त हुआ। इसमें जितना काल लगा उतने काल समुदाय को एक काल परिवर्तन कहते हैं। भव परिवर्तन प्रदेशाष्टकमत्यस्य, शेषेषु कुरुते भवी। उद्वर्तन-परावर्त, सन्तप्ताप्स्विव तन्दुलाः ॥१८६८ ।। अर्थ - जैसे उबलते हुए जल में निक्षिप्त चावल ऊपर नीचे होते रहते हैं, वैसे ही जीव के आठ प्रदेश छोड़कर शेष प्रदेश सदैव उद्वर्तन-परावर्तन करते रहते हैं अर्थात् ऊपर-नीचे होते रहते हैं ।।१८६८॥ प्रश्न - इस श्लोक से क्या कहा जा रहा है ? उत्तर - लोक असंख्यातप्रदेशी है। लोक के मध्य में अर्थात् मध्यलोक के ठीक मध्य में सुदर्शन मेरु स्थित है। इसके नीचे ठीक मध्य में गौ के स्तन के आकार को लिये हुए अर्थात् लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊँचाई को लिये हए दो के घनस्वरूप आठ प्रदेश सदा स्थिर रहते हैं। जीव भी लोक के प्रदेश प्रमाण असंख्यातप्रदेशी है। इसके भी आठ प्रदेश सदैव स्थिर रहते हैं। केवली समुद्घात में अर्थात् दण्ड समुद्घात के पूर्व केवली के और क्षेत्र परिवर्तन प्रारम्भ करने वाले सूक्ष्मनिगोदिया लब्ध्यपर्याप्त जीव के आठ मध्य प्रदेश ज्यों का त्यों आकार लिये हुए लोक के आठ प्रदेशों पर स्थित होकर समुद्घात का एवं क्षेत्र परिवर्तन का प्रारम्भ करते हैं। जीव के शेष प्रदेश चंचल हैं अत: वे उबलते हुए चावलों के सदृश ऊपर-नीचे होते रहते हैं। यह श्लोक का तात्पर्य अर्थ प्रश्न - वे आठ प्रदेश “दो के घन स्वरूप” हैं, इसका क्या अर्थ है ? उत्तर - जिस संख्या में दो का भाग देने पर एक शेष बचे उसे विषम राशि कहते हैं और जो राशि दो से भाजित करने पर पूर्ण विभक्त हो जाती है उसे सम राशि कहते हैं। जैसे एक कतार में रखे हुए सात फलों में विषमरूप चतुर्थ फल मध्यवर्ती होगा और यदि सम संख्यारूप आठ फल एक कतार में रखे हैं तो आगे-पीछे के तीन-तीन फल छोड़कर बीच के सम संख्या रूप दो फल मध्यवर्ती होंगे।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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