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________________ मरणकण्डिका - ४५० खेतमें जाने का सोचा। उसने मुनिराजसे कहा-मैं दूसरे खेत पर जा रहा हूँ। मेरी पत्नी भोजन लेकर आयेगी, उसको कह देना। मुनि ध्यानस्थ थे। उन्होंने कपिल की पत्नी को पूछने पर भी कुछ उत्तर नहीं दिया। ब्राह्मणी घर चली गयी। कपिल को समय पर भोजन नहीं मिला अत: उसने घर आनेपर अपनी पत्नी को पीटना प्रारंभ किया, ब्राह्मणी ने घबराकर कहा कि मैं तो खेत पर गयी थी किन्तु आप नहीं मिले, वहाँ एक महात्मा बैठे थे। उन्हें भी पूछा किन्तु कुछ उत्तर नहीं मिलनेसे वापिस आयी हूँ। इतना सुनते ही कपिलका क्रोध और अधिक बढ़ गया। उसने तत्काल खेतमें जाकर सेमर नाम की रुई से मुनिराज गुरुदत्त को लपेट दिया और आग लगा दी। उस घोर उपसर्गकी धीर वीर मुनिने अत्यंत शांतभावसे सहा। वे शरीर की ममताका त्यागकर शुक्ल ध्यानमें लीन हो गये और उन्होंने ध्यान द्वारा केवलज्ञानको प्राप्त किया। केवलज्ञान की पूजाके लिये चतुर्निकाय के देव आये। कपिल ब्राह्मण को बहुत पश्चात्ताप हुआ। उसने गुरुदत्त केवलीसे पुनः पुनः क्षमा मांगी और उनकी दिव्य देशना द्वारा अपना कल्याण किया। देखो! संवलियाली के समान शरीर जलते हुए भी गुरुदत्त मुनिराज आत्मामें लीन हुए और केवलज्ञान प्राप्त किया। प्रश्न - संवलिथाली किसे कहते हैं? उत्तर - मिट्टी के घड़े में उड़द की फलियाँ भर कर उसका मुख ढाक के पत्तों से बन्द कर उसे जमीन पर उल्टा अर्थात् मुख नीचा कर रखते हैं, पश्चात् घड़े को चारों ओर से अग्नि द्वारा वेष्टित कर देते हैं। उसे संवलियाली कहते हैं। गुरुदत्त महामुनि को सेमर की रुई लपेट कर आग लगा दी गई थी, वे सिर से पैरों पर्यन्त चारों ओर से जल रहे थे। गाढ-प्रहार विद्धोऽपि, कीटिकाभिरनाकुलः। स्वार्थं चिलातपुत्रोऽगाच्चालनी-कृत्त-विग्रहः ॥१६३२।। अर्थ - चिलातपुत्र नामक महामुनि का शरीर कीड़ों के तीव्र डंक प्रहार से चलनी के सदृश बिंध गया था, फिर भी अनाकुल भावों के प्रभाव से उन्होंने उत्तमार्थ मोक्ष प्राप्त कर लिया ॥१६३२ ।। * चिलातपुत्र मुनिकी कथा * राजगृह नगरीमें राजा उपश्रेणिक राज्य करते थे। एक दिन वे घोड़े पर बैठकर घूमने गये। घोड़ा दुष्ट था सो उसने उन्हें एक भयानक वनमें छोड़ा। उस वन का मालिक यमदण्ड नाम का भील था। उसके एक तिलकवती नामकी सुन्दर कन्या थी। राजा ने उसकी मांगकी। "इसका पुत्र ही राज्य का अधिकारी होगा" इस शर्तके साथ भील ने कन्या राजा को सौंप दी। उससे चिलातपुत्र नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। राजा अपने वचनानुसार राज्यका भार उसे सौंपकर दीक्षित हो गये। राजा बनते ही चिलातपुत्र प्रजापर नाना प्रकारके अन्याय करने लगा। जब कुमार श्रेणिक ने यह बात सुनी तब उन्होंने अपने पौरुषसे चिलातपुत्र को राज्यसे बहिष्कृत करके पिताका राज्य संभाला अर्थात् वे मगधके सम्राट् बन गये। चिलातपुत्र मगधसे निकलकर किसी वनमें जाकर बस गया और आस-पास के ग्रामोंसे जबरदस्ती कर वसूल कर उनका मालिक बन बैठा। उसके एक भर्तृमित्र नामका मित्र था। भर्तृमित्रने अपने मामा रुद्रदत्तसे उनकी कन्या सुभद्रा चिलात-पुत्रके लिए माँगी। रुद्रदत्तने इसे स्वीकार नहीं किया, तब
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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