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________________ परणकटिका - २ इस प्रकार निर्यापकाचार्य ने क्षपक को यहाँ तक कषायविजय एवं इन्द्रियविजय के उपायों का उपदेश दिया है। निद्रा-विजय के उपाय निद्रां जय नरं निद्रा, विद्धाति विचेतनम् । सुप्त: प्रवर्तते योगी, दोषेषु सकलेष्वपि ॥१५१६ ॥ अर्थ - हे क्षपकराज ! तुम निद्रा पर विजय प्राप्त करो, क्योंकि यह निद्रा मनुष्य को अचेतन बना देती है। निद्रित साधु सकल दोषों में प्रवृत्ति करता है ।।१५१६॥ प्रश्न - यहाँ अचेतन का क्या अर्थ है ? क्या सोता हुआ व्यक्ति निर्जीव हो जाता है ? उत्तर - जो गहरी नींद में सोता है वह उस समय योग्यायोग्य के विवेक से शून्य हो जाता है, इस अभिप्राय से आचार्यदेव ने उसे अचेतन कहा है अर्थात् यहाँ अचेतन का अर्थ 'विवेकज्ञान से रहित होना' है। यदा प्रबाधते निद्रा, स्वाध्यायं त्वं तदाश्रय । अर्थानणीयसो ध्यायन्, कुरु संवेग-निर्विदौ ॥१५१७ ।। अर्थ - भो क्षपक ! यदि तुम्हें निद्रा बाधक है, अर्थात् निद्रा सताती है तो तुम स्वाध्याय करो और स्वाध्याय के आश्रय से सूक्ष्म अर्थों का चिन्तन करो, अथवा संवेग तथा निर्वेद को वृद्धिंगत करने वाली कथाएँ सुनो या पढ़ो॥१५१७॥ निद्राविजय के उपाय निद्रा प्रीतौ भये शोके, यतः पुंसो न जायते । निर्जयाय ततस्तस्यास्त्वमिदं त्रितयं भज ॥१५१८ ।। अर्थ - प्रीति, भय एवं शोक होने पर मनुष्यों को स्वभावतः निद्रा नहीं आती, अत: हे क्षपक! तुम निद्रा पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रीति, भय एवं शोक का सेवन करो॥१५१८ ॥ प्रीति आदि के आधार ज्ञानाधाराधने प्रीति, भयं संसार-दुःखतः । पापे पूर्वार्जिते शोक, निद्रां जेतुं सदा कुरु ॥१५१९॥ अर्थ - हे क्षपक ! तुम निद्रा पर विजय प्राप्त करने के लिए सदैव ज्ञान-दर्शनादि आराधनों में प्रीति, संसार के दुखों से भय एवं पूर्वोपार्जित पापों में शोक करो ।।१५१९ ।। प्रश्न - प्रीति, भय एवं शोक ये तीनों मोह की पर्याय होने से अशुभ हैं, अत: ये अशुभ कर्मासव में ही कारण पड़ेगी, इस प्रकार इनमें और निद्रा में कोई अन्तर नहीं रहा, फिर जो संवर के इच्छुक हैं उनके द्वारा इनका सेवन करना कैसे योग्य है ? उत्तर - समस्त आपत्तियों के समूह का विनाश करने के लिए, शाश्वत सुख प्राप्त करने के लिए, असार
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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