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________________ मरणकण्डिका - ३४७ प्रश्न - "मन की रागादि से निवृत्ति होना मनोगुप्ति है" मनोगुप्ति का ऐसा लक्षण क्यों कहा गया है? 30 - यहाँ जान सम्द से नोइन्द्रियाच मति का ग्रहण किया गया है। यह मति आत्मा में रागादि परिणामों के साथ एक ही काल में प्रवृत्तिशील होती है। विषयों के अवग्रहादि ज्ञान बिना रागद्वेष में प्रवृत्ति नहीं होती, यह अनुभवसिद्ध है और जो मानसज्ञान वस्तुतत्त्व के अनुसार होता है, उस ज्ञान के साथ रागद्वेष नहीं होते यह बात आत्म-साक्षिक है। अत: यह सिद्ध हुआ कि तत्त्व को ग्रहण करने वाले मन का रागादि भावों के साथ साहचर्य न होना मनोगुप्ति है। इसीलिए ये मन की रागादि से निवृत्ति को मनोगुप्ति कहा गया है। प्रश्न - मन और ज्ञान का क्या सम्बन्ध है ? उत्तर - ‘मन' शब्द ज्ञान का उपलक्षण है, अत: रागद्वेष की कालिमा से रहित ज्ञान मात्र मनोगुप्ति है। यही कारण है कि जब आत्मा इन्द्रियज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान या मनः पर्ययज्ञान रूप से परिणत होती है उस समय भी मनोगुप्ति होती है। अथवा जो आत्मा पदार्थों को जानता है वह मन है और उस मन का रागद्वेष परिणमन नहीं करना मनोगुप्ति है। प्रश्न - वचन गुप्ति किसे कहते हैं ? उत्तर - विपरीत अर्थ की प्रतिपत्ति में निमित्तभूत और दूसरों के दुख की उत्पत्ति में निमित्तभूत जो वचन अधर्ममूलक हैं उनसे निवृत्ति करना वचन गुप्ति है। प्रश्न - वचन जो पौद्गलिक हैं, वे आत्मा के परिणाम नहीं हैं फिर अधर्म मूलक वचन-निवृत्ति को वचनगुप्ति कैसे कहा जा रहा है ? उत्तर - वचन पौद्गलिक हैं, यह सत्य है, किन्तु जैसे पौद्गलिक पत्थर की मार से होने वाला घाव आत्मा की पीड़ा में कारण है, उसी प्रकार मिथ्यावचन, कठोर वचन, स्वप्रशंसा एवं पर की निन्दा करने वाले और दूसरों में उपद्रव कराने वाले वचनों से स्व-पर की आत्मा में राग-द्वेष उत्पन्न हो जाते हैं, जिनसे कर्मबन्ध होता है अत: जिन वचनों के माध्यम से आत्मा अशुभ भावों में प्रवृत्ति कर कर्मबन्ध करता है उन वचनों से आत्मा को निवृत्त करना वचन गुप्ति है। ___ काय गुप्ति का लक्षण काय-क्रिया-निवृत्तिा, देह-निर्ममतापि वा। हिंसादिभ्यो निवृत्तिा, वपुषो गुप्तिरिष्यते ।।१२४६ ॥ अर्थ - शारीरिक क्रियाओं से अर्थात् गमन करने, खड़े होने, बैठने, हस्त-पैरादि को फैलाने एवं संकोच करने वाली क्रियाओं से निवृत्त होना कायगुप्ति है। अथवा शरीर से निर्ममत्व होना, अथवा हिंसादि पापों से निवृत्त होना कायगुप्ति है।।१२४६।। प्रश्न - उठने-बैठने आदि की क्रियाएँ तो आत्मा द्वारा प्रवर्तित होती हैं तब आत्मा औदारिक आदि काय की क्रियाओं से कैसे निवृत्त होगा ?
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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