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________________ मरणकण्डिका प्रश्न- आठ प्रवचन माता कौन-कौन हैं और इन्हें व्रत की रक्षक कैसे कहा जा रहा है ? उत्तर - रत्नत्रय को प्रवचन कहते हैं और पाँच समिति एवं तीन गुप्ति इन आठ को प्रवचन माता कहते हैं। जैसे माता अपने पुत्र का उपाय से रक्षण करती है वैसे ही ये समिति और गुप्ति पाँच महाव्रतों का रक्षण करती हैं । - ान भावना किसे कहते हैं और ये कितनी होती हैं ? उत्तर- वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम और चारित्रमोह के उपशम या क्षयोपशम की अपेक्षा जो आत्मा के द्वारा भाई जाती है या बार-बार जिनका चिन्तन किया जाता है उन्हें भावना कहते हैं। प्रत्येक व्रत की पाँचपाँच भावनाएँ हैं। इस प्रकार ये पच्चीस भावनाएँ भी महाव्रतों का रक्षण करती हैं। - - प्रश्न उत्तर "मैं आमरण पाँचों पाप नहीं करूँगा" आत्मा में इस प्रकार का जो परिणाम उत्पन्न होता है अथवा चारित्र मोहनीय कर्म का उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशम होने पर हिंसादि परिणामों उसे अहिंसादिव्रत कहते हैं। उसे व्रत कहते हैं। का अभाव होता - व्रत किसे कहते हैं ? ३४६ - जैसे दुर्ग के सद्भाव में राजा का रक्षण होता है और दुर्ग के अभाव में राजा का नाश होता है। वैसे ही रात्रिभोजनत्याग, अष्ट प्रवचन माता और भावनाओं के सद्भाव में आत्मा हिंसादि पापों से परावृत्त होता है। और इनके अभाव में यह आत्मा इन पापों से परावृत्त नहीं होता, अतः आचार्य ने इन्हें व्रतरक्षणार्थ अर्थात् व्रतों की रक्षक माना है। प्रश्न रक्षक किसे कहते हैं ? उत्तर - जिसके नहीं होने पर जो नष्ट हो जाता है और जिसके होने पर जो नष्ट नहीं होता वह उसका रक्षक कहा जाता है। रात्रिभोजन से हानि हिंसादीनां मुनेः प्राप्तिः, पञ्चानां सह शङ्कया । विपत्तिर्जायते स्वस्थ, रात्रिभुक्तेस्तथा स्फुटम् ॥ १२४४ ।। अर्थ - रात्रि में आहार-पान करने से मुनि को शंका बनी रहती है कि मेरे से हिंसादि पाप तो नहीं हो रहे हैं ? इसके साथ-साथ उसे पाँचों पापों का दोष लगता है और रात्रि में आहारार्थ करते हुए स्वयं साधु को ठूंठ, कण्टक एवं सर्पादि से विपत्ति का सामना करना पड़ सकता है || १२४४ ॥ प्रवचन मातृका के अन्तर्गत मनोगुप्ति और वचनगुप्ति का लक्षण मनसो दोष-विश्लेषो, मनोगुप्तिरितीष्यते । वाग्गुप्तिश्चाप्यलीकादेर्निवृत्तिमनमेव च ।। १२४५ ।। अर्थ - - मन के रागादि दोष नष्ट होना मनोगुप्ति है और असत्य से निवृत्त होना अथवा मौन धारण करना वचन गुप्ति है ।। १२४५ ।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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