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________________ मरणकण्डिका - ३४८ उत्तर - यहाँ काय सम्बन्धी क्रिया की कारणभूत आत्मा की क्रिया को काय क्रिया कहा गया है अत: उसकी निवृत्तिकाय गुप्ति है। अथवा कर्मग्रहण में जो-जो क्रियाएँ निमित्त बनती हैं, उन समस्त क्रियाओं से निवृत्त होना कायगुप्ति है। प्रश्न - जब शरीर आयु कर्मरूपी साँकल से बँधा है तब कायोत्सर्ग में शरीर का त्याग कैसे किया जा सकता है ? उत्तर - यहाँ कायोत्सर्ग शब्द से 'शरीर का त्याग' अर्थ ग्राह्य नहीं है अपितु यह शरीर अपवित्र है, असार है और आपत्तियों का निमित्त है, ऐसा जान कर शरीर से ममत्व छोड़ना कायोत्सर्ग गुप्ति है। आगः नक्षा शब्द से शिक्षादि पाँरी हा दिये हैं, अत: हिंसादि पाँच पापों से निवृत्त होना कायगुप्ति है। गुप्तियों का कार्य पुरस्य खातिका यद्वत्, क्षेत्रस्य च यथा वृतिः । तथा पापस्य संरोधे, साधूनां गुप्तयो मताः॥१२४७ ।। अर्थ - जैसे नगर की रक्षा हेतु खाई होती है वैसे ही, अथवा जैसे खेत की बाड़ होती है वैसे ही पाप का निरोध करने के लिए साधुओं की गुप्तियाँ मानी गई हैं अर्थात् गुप्तियाँ पाप का निरोध कर साधुओं की रक्षा करती हैं।।१२४७॥ क्षपक को कर्तव्य बोध तस्मान्मनो-वचः काय-प्रयोगेषु समाहितः। भव त्वं सर्वदा जात-स्वाध्याय-ध्यान-सङ्गतिः ।।१२४८ ।। अर्थ - इस प्रकार गुमियों का माहात्म्य जान कर हे क्षपक ! तुम सदा मन के खोटे विचार रूप मनःप्रयोग में, कुवचन रूप वचनप्रयोग में और शरीर की कुचेष्टारूप अथवा बिना प्रयोजन शारीरिक क्रिया रूप काय-प्रयोग में सावधान रहते हुए अर्थात् इन्हें रोकते हुए स्वाध्याय एवं ध्यान में तत्पर रहो।।१२४८ ।। प्रवचनमातृका के अन्तर्गत ई समिति का लक्षण मार्गोद्योतोपयोगालामालम्बस्य च शुद्धिभिः। गच्छत: सूत्र-मार्गेण, मतेर्यासमितिर्यतेः ॥१२४९ ।। अर्थ - मार्गशुद्धि, उद्योत शुद्धि, उपयोग शुद्धि और आलम्बन शुद्धि, इन चार शुद्धियों के द्वारा आगमानुसार गमन करने वाले साधु के ईर्या समिति होती है ॥१२४९ ।। प्रश्न - उपर्युक्त चारों शुद्धियों के लक्षण क्या हैं ? उत्तर - मार्गशुद्धि - जो मार्ग कीट, चींटी, मकोड़े आदि त्रस जीवों से रहित हो; हरित तृण, पत्ते, डण्ठल, अंकुर, बीज एवं कीचड़ आदि से रहित हो; स्त्री, पुरुष, पशु एवं सवारियों के आवागमन से प्रासुक
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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